ओ३म्
‘पुनर्जन्म व त्रैतवाद के सिद्धांत पर एक आर्य विद्वान के नए तर्क व युक्तियाँ ‘
वैदिक सनातन धर्म पुनर्जन्म के सिद्धान्त को सृष्टि के आरम्भ से ही मानता चला आ रहा है। इसका प्रमाण है कि सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ने प्रथम चार ऋषियों और स्त्री-पुरूषों को उत्पन्न किया। अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नाम के चार ऋषियों को परमात्मा ने चार वेदों का ज्ञान दिया। वेदों में पुनर्जन्म का सिद्धान्त ईश्वर द्वारा बताया गया है। इसलिए इस सिद्धान्त पर शंका करने का कोई कारण नहीं है। तथापि अनेक तर्कों से इस सिद्धान्त को सिद्ध भी किया जा सकता है। वैसे सिद्धान्त कहते ही उसे हैं जो स्वयं सिद्ध हो व जिसे तर्क व युक्तियों से सिद्ध किया जा सके। असिद्ध बातों को सिद्धान्त नहीं कहा जा सकता। एक प्रसिद्ध सिद्धान्त है कि अभाव से भाव उत्पन्न नहीं हो सकता और भाव का अभाव नहीं हो सकता। गीता में भी इस आशय का श्लोक है कि जिस वस्तु का अस्तित्व होता है उसका अभाव अर्थात् उसका विनाश कभी नहीं होता। जो सत्ता है ही नहीं वह कभी अस्तित्व में नहीं आ सकती। ईश्वर भी अभाव से भाव की उत्पत्ति नहीं कर सकता। वह भाव से भाव को उत्पन्न करता है अर्थात् कारण प्रकृति से संसार बनाता है और जीवात्माओं को मनुष्यादि जन्म देता है। सृष्टि में कारण प्रकृति व जीव का अस्तित्व नित्य व शाश्वत् है और नित्य पदार्थ सदा अविनाशी होता है।
आर्य जगत के प्रसिद्ध विद्वान प्राध्यापक राजेन्द्र जिज्ञासु एक बार नागपुर के हंसापुरी आर्य समाज के कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे। वहां उनकी प्रेरणा से हुतात्मा पं. लेखराम जी की स्मृति में कुछ समय पूर्व वैदिक साहित्य की बिक्री का केन्द्र आरम्भ किया गया था। इस पुस्तक बिक्री केन्द्र में प्रा. जिज्ञासु जी की स्वसम्पादित पुस्तक “कुरान वेद की ठण्डी छाओं में” उपलब्ध थी। संयोगवश एक मुस्लिम युवक अपने एक हिन्दू मित्र के साथ घूमता हुआ आर्य समाज मन्दिर आ गया। इस समाज के अधिकारी श्री उमेश राठी इन युवकों को वहां मिल गये। उन्होंने इन दोनों युवकों को पुस्तक बिक्री केन्द्र कक्ष में ही बैठाया। यह मुस्लिम युतक जमायते इस्लामी की तबलीग के लिए एक वर्ष में एक मास का समय दिया करता था।
युवक ने वहां विद्यमान पुस्तक ‘कुरान वेद की ठण्डी छाओं में’ को देखा तो उसे लेकर उसके पन्ने पलटने कर देखने लगा। उसने पुस्तक को लेने के लिए राठी जी से पुस्तक का मूल्य पूछा तो उन्होंने कहा कि यह हमारी ओर से आपको भेंट है। राठी जी ने उसे बताया कि हमारे यहां इस समय इस्लाम के एक अधिकारी विद्वान प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी विद्यमान हैं। क्या वह उनसे चर्चा करना पसन्द करेगा। वह युवक इसके लिए एकदम तैयार हो गया। जिज्ञासुजी सन्ध्या कर रहे थे। उससे निवृत होकर उस मुस्लिम युवक से वार्तालाप आरम्भ करते हुए उन्होंने कहा कि आप तबलीग़ करते हुए मुख्य विचार क्या देते हैं? उस युवक ने कहा-“जो हज करे, नमाज़ पढ़े, रोज़ा रखे, वह सच्चा मुसलमान है। जो आवागमन को माने वह काफिर है।“ उसने ऐसी कुछ और बातें भी कहीं यथा “मुहम्मद अल्लाह का अन्तिम नबी और कुरान उसका अन्तिम इल्हाम है”, इस बात को विशेष बल देकर कहा। यह सब सुनकर प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु उस युवक से बोले – “क्या आपने बर्फ देखी है? उसने कहा, क्यों नहीं?, देखी है।“ उन्होंने पूछा बर्फ पर घूप पड़े तो क्या होगा? युवक ने उत्तर दिया कि बर्फ पिघल कर जल बन जायेगा। जिज्ञासु जी ने फिर पूछा कि उस जल पर सूर्य की किरणे पड़ने पर जल का क्या होगा? उत्तर मिला कि भाप बन जायेगी। युवक से फिर पूछा कि भाप का क्या होगा तो युवक बोला कि मेघ बनेंगे। ऐसे ही मेघ वर्षा बनकर वर्षेंगे। यह उस युवक का कथन था। अब जिज्ञासु जी ने समीक्षा करते हुए कहा कि ‘‘जड़, निर्जीव व अचेतन ज्ञान शून्य ब़र्फ का तो आप आवागमन मानते हैं और ज्ञानवान चेतन जीव के पुनर्जन्म को कु़फ्र्र बता रहे हैं। यह कैसी फि़लास्फी है?’’
जिज्ञासु जी ने आगे कहा कि आप आवागमन को मानने वालों को काफिर बता रहे हैं और आपका सबसे बड़ा दार्शनिक डा. इकबाल सुबह से रात व रात से सुबह, सूर्य तारों का उदय व अस्त होना, दिन व रात का एक दूसरे के बाद आना मानता है। वह जीवन का अन्त नहीं मानता। हज़रत मुहम्मद की कामना, “‘मैं अल्लाह की राह में शहीद हो जाऊं, फिर जन्मूँ–फिर शहीद हो जाऊं ……।“ को क्या कुफ्र ही मानेंगे? क्या यह आवागमन नहीं है?
जिज्ञासु जी युवक को बता रहे हैं – “एक मियां मर गया। उसे कबर में दबाया गया। इसके शरीर की खाद बन गई। कबर पर उगे पौधे को अच्छी खाद मिली। कब्रस्तान के मजावर की बकरी उस पौधे के पत्ते खा–खा कर पल गई। उसे कसाई ने क्रय कर लिया। उसका मांस खा–खा कर एक मियां का शरीर बन गया। वह मरा तो कबर में दबाया गया। उसका शव भी खाद बन गया फिर कब्रस्तान की बकरी ने खाया और वही चक्र चल पड़ा। क्या यह आवागमन है या नहीं?’’ वह लिखते हैं कि उस युवक के पास अब कहने के लिए कुछ था ही नहीं। उसे जो रटाया गया था वही उसने प्रकट किया। अब वह आगे क्या कहें?
जिज्ञासुजी ने उस युवक से एक अन्य विषय पर चर्चा आरम्भ कर कहा कि सृष्टि रचना से पूर्व क्या था? उसने कहा कि केवल अल्लाह था। उससे जिज्ञासु जी ने पूछा कि क्या आप अल्लाह को न्यायकारी, दयालु, दाता, पालक, स्रष्टा, स्वामी मानते हैं? उस युवक ने कहा – ‘क्यों नहीं? वह अल्लाह आदिल (न्यायकारी), दयालु है और यह उसका स्वभाव है।‘ उससे पूछा कि क्या अल्लाह के यह गुण सदा से, हमेशा से हैं? उस युवक ने कहा कि हां, अनादि काल से वह दयालु, न्यायकारी आदि है। इस पर जिज्ञासुजी ने उससे पूछा कि जब अल्लाह के अतिरिक्त कोई था ही नही तो वह दया किस पर करता था? न्याय किसे देता था? जब प्रकृति थी ही नहीं, वह देता क्या था? सृजन क्या करता था? जीव तो थे नहीं, वह पालक स्वामी किसका था? उस युवक से वार्ता के समय वहां आर्य समाज के विद्वान व अन्य लोग भी उपस्थित थे। उन्होंने जिज्ञासुजी से कहा कि आवागमन व त्रैतवाद के बारे में आपकी युक्तियां हमने प्रथम बार ही सुनी हैं। यह वर्णन आर्य समाज या किसी वैदिक ग्रन्थ में भी नहीं है।
इस युवक से संयोग का परिणाम यह हुआ कि प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने आवागमन सहित कुछ अन्य विषयों पर नये अन्दाज से विचार प्रस्तुत किये जिनसे वैदिक मत के सिद्धान्तों की पुष्टि हुई। वैदिक मत और आर्य समाज में पुनर्जन्म अर्थात् आवागमन पर इतनी सामग्री है कि जिसे पढ़कर पुनर्जन्म संबंधी सभी शंकाओं का निराकरण हो जाता है। इस विषय पर एक शताब्दी से कुछ अधिक पहले रक्तसाक्षी, हुतात्मा शहीद पं. लेखराम जी ने एक महत्वपूर्ण तर्क प्रमाण पुरस्सर पुस्तक लिखी थी। पुस्तक लिखने से पूर्व उन्होंने विज्ञप्तियां देकर सभी मत-मतान्तर के लोगों को पुनर्जन्म विषयक अपनी शंकायें भेजने के लिए प्रेरित किया था। उन्होने सभी प्रकार की सभी शंकाओं का निराकरण व समाधान अपनी पुस्तक में किया है। वेद और गीता पुनर्जन्म को स्वीकार करती हैं। वर्तमान में समय में कोई कुछ भी कहे व माने, परन्तु आवागमन और ईश्वर-जीव-प्रकृति के नित्य, अजन्मा व अविनाशी होने का त्रैतवाद का सिद्धान्त सर्वत्र व्यवहार में है। विज्ञान भी जड़ प्रकृति के अस्तित्व को स्वीकार करता है जो कि निभ्र्रान्त सत्य है। इसी के साथ इस चर्चा को विराम देते हैं।
–मनमोहन कुमार आर्य
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I have some question….
1..why don’t god punishes for bad deeds in this life then next life? By doing this no one will have commited any bad deeds because they will fear of punishment.
2..I WANT ARYASAMAJ GITA PLEASE give download link of it.i want to know what krishna told arjuna
Thank you
3…is it necessary to worship god….if yes then why???
We get Self Confidence by worshiping God and having faith in him.
The higher the level of Self Confidence the Higher the level of our development.
धन्यवाद एवं नमस्ते महोदय। इस जन्म के कर्म दो प्रकार के हैं। प्रथम क्रियमाण कर्म और दूसरे संचित कर्म। क्रियमाण कर्म अच्छे व बुरे दोनों प्रकार के होते हैं। इनका फल ईश्वर की व्यवस्था से इसी जन्म में मिलता है। बहुत से बुरे कर्म ऐसे हो सकते हैं कि उनका भोग ईश्वर को जीवात्मा को पशु या पक्षी आदि बनाकर कराना है, तो उन्हें वह इस जन्म में कैसे दे सकता है? इस जन्म में पूर्वजन्म के कर्मों का भी भोग करना है। साधारण नियम है पहले पुराना हिसाब चुकता हो फिर नया हो तो अधिक अच्छा कहा जाता है। हम अनुमान ही लगा सकते हैं। ईश्वर अपने विधान के अनुसार कार्य करता है। हमारे ऋषियों ने तप व समाधि के द्वारा जीवन के अनेक रहस्यों का साक्षात किया था और उसका वह प्रचार भी करते थे। अतः असम्भव बातों को छोड़कर सभी बुद्धिसंगत बातों को हमें स्वीकार करना चाहिये। जहां बुरे काम के इसी जन्म में दण्ड देने की बात है, इस निमित्त ईश्वर जीवात्मा में भय, शंका व लज्जा उत्पन्न करता ही है। वर्तमान समय में लोग जानते हैं कि भ्रष्टाचार बुरा है, सजा मिलेगी परन्तु जानते हुए भी करते हैं। हत्या व बलात्कार आदि काम करने वाले भी जानते हैं कि दण्ड मिलेगा, फिर भी करते हैं। भारत तो संसार में भ्रष्टाचार व अन्य अपराधों में बहुत उपर है। यह काम अशिक्षित कम शिक्षित व तथाकथित संस्कारित लोग अधिक करते हैं। अतः दण्ड का ज्ञान होने पर भी लोग बुरा काम करते ही हैं, यह हम दिन प्रतिदिन अपने जीवन में देखते रहते हैं। आर्य विद्वानों के गीता भाष्यों में किसी की प्रति की नैट पर उपलब्धता की जानकारी मुझे नहीं है। अतः मैं इस विषय में आपकी सहायता नहीं कर सक रहा हूं। हां, आप इसे किसी आर्यप्रकाशक से डाक से मंगा सकते हैं। सादर एवं धन्यवाद।
Thank you and please give ans. Of 3rd question also.
ishwar ke gud sada usme vidyaman hote hain use kisi ke hone astitva me aur na astitva me hone se wo seemit nahi ho sakta.. 😀 😀 😀
ishwar ke gud kisi ke astitva me hone na hone ki wajah se nahi hote dhoort samajiko.
Ishwar ke gud kya hota hai ?
बुद्धि की दौड़ से बाहर है परमात्मा ज्ञानी जनो…विचार से पार है वो.. निर्विचार में घटता है …बुद्धि समय से बाहर नहीं निकल सकती..और परमात्मा समय के फेर में नहीं पड़ता
बुद्धि की दौड़ से बाहर है परमात्मा ज्ञानी जनो ???/ iskaa kya aashay janab ??? thoda praman bhi to dete bhai jaan??? . aur yah bhi batlana ki aap kis mat ke ho jisse aapse charchaa kiyaa jaa sake….. aur screenshot ke praman chahiye to hamare fb page aaye. aur bina praman ke saty ki charchaa karni ho to yaha par charcha kiyaa jaa sakta hai. sab reference ke aadhaar hogi…….