परमेश्वर ने क्या दिया और क्या नहीं दिया ?

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परमेश्वर ने क्या दिया और क्या नहीं दिया ?

लेखक – स्वामी विश्वंग जी परिव्राजक , ऋषि उद्यान, अजयमेरू नगरी

मनुष्य के ज्ञान की दृष्टी से संपूर्ण ब्रह्माण्ड में प्राणियों की संख्या असंख्य है | एक मनुष्य ही नहीं, बल्कि सारे मनुष्य मिलकर भी सब प्राणियों की संख्या को गिन नहीं सकते | मनुष्यों की दृष्टी से न गिनने की स्तिथि में असंख्य कहा जाता है | परन्तु परमेश्वर की दृष्टी से प्राणियों की संख्या सिमित है | क्यों की परमेश्वर अपनी असीमित शक्ति से सभी प्राणियों को गिनता है, इसलिए परमेश्वर सब के कर्म-फल ठीक-ठीक प्रधान करता है |

अनेक बार, अनेको लोग परमेश्वर को कोसते रहते है की “ हमे कुछ नहीं दिया, हमे क्या दिया, हमे यह नहीं दिया, हमे वो नहीं दिया “ इत्यादि अर्थात कोई कहता है हमे आँखे नहीं दी, कोई कहता है हमे वाणी नहीं दी, कोई कहता है हमे हाथ, पाँव, नाक, या कोई और अंग नहीं दिया, कोई कहता है हमे अच्छे माता-पिता नहीं दिये, कोई कहता है हमे जमीन नहीं दी | यदि एक-एक को लिखने लगे, तो लिखते ही जायेंगे, लिखना बंद नहीं हो पायेंगा | जितने मनुष्य उतनी शिकायते | शिकायतों की कतार बड़ी लंबी बनेगी |

ऐसा सोच विचार रखना बहोतेक वादी के लिए सामन्य हो सकता है, परन्तु यही सोच विचार अध्यात्मिक व्यक्ति के लिए अत्यंत गातक होंगा | एक और परमेश्वर को परमेश्वर स्वीकार किया जा रहा है और दूसरी और परमेश्वर पर शक किया जा रहा है | यदि परमेश्वर के विषय में किसी से भी यह पूछा जाय की “ क्या परमेश्वर न्यायकारी है या अन्यायकारी ? उत्तर यह मिलेंगा की परमेश्वर न्यायकारी है | यदि परमेश्वर न्यायकारी है तो शक नहीं कर सकते और शक करना है, तो परमेश्वर न्यायकारी नहीं हो सकता | परन्तु साधनों के आभाव से ग्रस्त जनता इस बात को नहीं समझ सकती है | यह ही समझ का अभाव कभी-कभी साधना करने वाले अध्यात्मिक व्यक्तियों में भी देखा जाता है | साधनों के आभाव की पीड़ा इतनी गहरी होती है की साधना के पथिक का सारा ज्ञान दब जाता है | और वह साधक भी परमेश्वर को कोसने लगता है |

यह कैसी विडम्बना है देखिये परमेश्वर ने सारे साधन दिये है पर किसी को आँख, किसी को कान, किसी को नाक या किसी को वाणी नहीं दिये | एक अंग या साधन नहीं है, बाकी सभी अंग या साधन है | सब कुछ दिये जाने पर भी एक साधन को लेकर साधक के मन में परमेश्वर के प्रति शक उत्पन्न हो रहा है | ऐसी स्तिथि में साधक, साधना को साधना के रूप में समूचे पद्धति से नहीं कर पायेंगा | साधक को यह विचार करना चाइये की जितने भी साधन मिले हुए है वे मेरे कर्मो के कर्मो के आधार पर ही मिले है, और जो भी साधन नहीं मिले है, वे भी मेरे कर्मो के आधार पर ही नहीं मिले है | यदि इस बात को साधक समझता है, तो इस समझ को विवेक के रूप में बदले | क्यों की समझने मात्र से प्रयोजन की सिद्धि नहीं होती है | इसलिए उस समझ को विवेक में बदलना चाइये और उस विवेक को भी वैराग्य में बदलना पड़ता है | उसी स्तिथि में साधक के मन में फिर कभी परमेश्वर के प्रति शंका नहीं होंगी |

साधक को यह भी समझ लेना चाइये की परमेश्वर ने हमे जितने भी साधन दिये है, उन साधनों से भी हम अपने प्रयोजनों को पूर्ण कर सकते है | हा, इतना अवश्य है की समय में थोडा बहोत आगे-पीछे हो सकता है, परन्तु प्रयोजन को अवश्य पूरा कर सकते है | सब साधन उपलब्ध है पर एक आद साधन के आभाव में हताश निराश होने की आवश्यकता नहीं है | चाहे आँख  न हो, चाहे कान न हो, चाहे हाथ न हो, चाहे पाँव न हो, परन्तु हमारी बुद्धि कार्य कर रही है, तो बहोत है | उस बुद्धि के बल पर हम वह सब कुछ कर सकते है, जो मनुष्य के द्वारा करने योग्य है |

हम पर परमेश्वर की इतनी अधिक कृपा है की हमे वह अमूल्य बुद्धि दी है, जो किसी अन्य प्राणी में देखने को नहीं मिलती है, यदि मनुष्य यह विचार न करे की “ मुझे यह नहीं दिया, वो नहीं दिया “ बल्कि यह विचार करे की जो भी परमेश्वर ने मुझ को साधन दिये, उन साधनों के प्रयोग कैसे करू, जिससे अपने प्रयोजन को पूरा कर सकू | हमे जितने भी साधन मिले हुए है, उनका भी पूरा प्रयोग नहीं कर पा रहे है, अर्थात सदुपयोग कम हो रहा है और दुरपयोग ज्यादा हो रहा है | एक-एक साधन के दुरूपयोग को रोक-रोक कर उसे सदुपयोग में लगायाजाय तो हमे समय की कमी दिखाई देंगी और साधनों की अधिकता दिखाई देंगी | परमेश्वर ने उधार मन से इतने साधन उपलब्ध कराये है की उनका सदुपयोग करने का समय ही बच नहीं पाता है तो और अधिक साधनों को पाकर भी क्या कर लेंगे ? हा, जो भी साधन उपलब्ध है, उनका कितना प्रतिशत प्रयोग किया और कितना प्रतिशत प्रयोग नहीं किया, इसका आकलन किया जाय, तो मनुष्य को अनुभूति होंगी की साधन कम मात्रा में है या अधिक मात्रा में है | साधन कम है या अधिक है, यह बड़ी बात नहीं है, बल्कि उन साधनों का समुचित प्रयोग कितनी मात्रा में किया और कितनी मात्रा में नहीं किया | साधक को उपयोग की दिशा में कदम बढ़ाना चाइये, ना की साधनों को पाने की दिशा में | परमेश्वर ने हमे क्या नहीं दिया ? सब कुछ दिया है, ऐसी मति से ही साधक साधना कर सकता है |

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