पण्डितजी के बलिदान से कुछ समय पहले की घटना है।
पण्डितजी वज़ीराबाद (पश्चिमी पंजाब) के आर्यसमाज के उत्सव
पर गये। महात्मा मुंशीराम भी वहाँ गये। उन्हीं दिनों मिर्ज़ाई मत के
मौलवी नूरुद्दीन ने भी वहाँ आर्यसमाज के विरुद्ध बहुत भड़ास
निकाली। यह मिर्ज़ाई लोगों की निश्चित नीति रही है। अब पाकिस्तान
में अपने बोये हुए बीज के फल को चख रहे हैं। यही मौलवी
साहिब मिर्ज़ाई मत के प्रथम खलीफ़ा बने थे।
पण्डित लेखरामजी ने ईश्वर के एकत्व व ईशोपासना पर एक
ऐसा प्रभावशाली व्याख्यान दिया कि मुसलमान भी वाह-वाह कह
उठे और इस व्याख्यान को सुनकर उन्हें मिर्ज़ाइयों से घृणा हो गई।
पण्डितजी भोजन करके समाज-मन्दिर लौट रहे थे कि बाजार
में एक मिर्ज़ाई से बातचीत करने लग गये। मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद
अब तक कईं बार पण्डितजी को मौत की धमकियाँ दे चुका था।
बाज़ार में कई मुसलमान इकट्ठे हो गये। मिर्ज़ाई ने मुसलमानों को
एक बार फिर भड़ाकाने में सफलता पा ली। आर्यलोग चिन्तित
होकर महात्मा मुंशीरामजी के पास आये। वे स्वयं बाज़ार
गये, जाकर देखा कि पण्डित लेखरामजी की ज्ञान-प्रसूता, रसभरी
ओजस्वी वाणी को सुनकर सब मुसलमान भाई शान्त खड़े हैं।
पण्डितजी उन्हें ईश्वर की एकता, ईश्वर के स्वरूप और ईश की
उपासना पर विचार देकर ‘शिरक’ के गढ़े से निकाल रहे हैं।
व्यक्ति-पूजा ही तो मानव के आध्यात्मिक रोगों का एक मुख्य
कारण है।
यह घटना महात्माजी ने पण्डितजी के जीवन-चरित्र में दी है
या नहीं, यह मुझे स्मरण नहीं। इतना ध्यान है कि हमने पण्डित
लेखरामजी पर लिखी अपनी दोनों पुस्तकों में दी है।
यह घटना प्रसिद्ध कहानीकार सुदर्शनजी ने महात्माजी
के व्याख्यानों के संग्रह ‘पुष्प-वर्षा’ में दी है।