सूर्य-चन्द्र की उत्पत्ति :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

मैं अभी कह चुका हूँ कि परमात्मा ने ही इस सूर्य-चन्द्र को बनाया है । परंतु पुराण कुछ और ही कहते हैं । वे इस प्रकार वर्णन करते हैं कि कश्यप ऋषि की अदिति, दिति, दनु, कद्रू, बनिता आदि अनेक स्त्रियाँ थीं । इसी अदिति से आदित्य अर्थात् सूर्य, चन्द्र, तारा, नक्षत्र आदि उत्पन्न हुए । भागवतादि यह भी कहते हैं कि अत्रि ऋषि के नेत्र से चन्द्र उत्पन्न हुआ है; यथा- अथातः श्रूयतां राजन् वंशः सोमस्य पावनः । यस्मिन्नैलादयो भूपाः कीर्त्यन्ते पुण्यकीर्त्तयः ॥ सहस्रशिरसः पुंसो नाभिह्रदसरोरुहात् । जातस्यासीत्सुतो धातुरत्रिः पितृसमो गुणैः ॥ तस्य दृग्भ्योऽभवत्पुत्रः सोमोऽमृतमयः किल । विप्रौषध्युडुगणानां ब्रह्मणा कल्पितः पतिः ॥ कोई कहता है कि समुद्र से चन्द्र की उत्पत्ति हुई । इसी प्रकार मेघ कैसे बनता, वायु … Continue reading सूर्य-चन्द्र की उत्पत्ति :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

पृथिवी आदि की उत्पत्ति :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

वेदों में पृथिवी आदि की उत्पत्ति यथार्थ रूप से लिखी हुई है। धीरे-धीरे बहुत दिनों में यह पृथिवी इस रूप में आई है। यह प्रथम सूर्यवत् जल रही थी, अभी तक पृथिवी के भीतर अग्नि पाया जाता है । कई स्थानों में पृथिवी से अग्नि की ज्वाला निरंतर निकल रही है। इसी को ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं। कहीं-कहीं गरम पानी निकलता है। इसका भी यही कारण है कि वहाँ पर अग्नि है। धीर-धीरे ऊपर से पृथिवी शीतल होती गई । तब जीव-जन्तु उत्पन्न हुए । लाखों वर्षों में, वह अग्नि की दशा से इस दशा में आई है। वेद विस्पष्ट रूप से कहते हैं कि ” सूर्यचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् । दिवंच पृथिवीञ्चांत- रिक्षमथो स्वः।” परमात्मा पूर्ववत् ही सूर्य, चन्द्र, द्युलोक, … Continue reading पृथिवी आदि की उत्पत्ति :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

ईश्वर का अस्तित्व :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

प्रथम यहाँ शंका हो सकती है कि ईश्वर ही कोई वस्तु सिद्ध नहीं होता । इसके उत्तर में बड़े-बड़े शास्त्र हैं, यहाँ केवल दो-एक बात पर ध्यान दीजिये । भाव से भाव होता है अर्थात् प्रथम किसी पदार्थ का होना आवश्यक है । उस पदार्थ से अन्य पदार्थ होगा । वह पदार्थ चेतन परम ज्ञानी परमविवेकी होवे, क्योंकि परम ज्ञानी ही इस ज्ञानमय जगत् को बना सकता है । अतः कोई परम ज्ञानी पुरुष सदा से विद्यमान है, वही परमात्मा ब्रह्म आदि नाम से पुकारा जाता है । ईश्वर के अस्तित्व में दूसरा प्रमाण रचना है। अपने शास्त्र में ” जन्माद्यस्य यतः ” जिससे इस जगत् का जन्म – पालन और विनाश हो, उसे ईश्वर कहा है । इसकी रचना … Continue reading ईश्वर का अस्तित्व :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

सृष्टि-विज्ञान :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

आश्चर्य रूप से सृष्टि का वर्णन वेदों में उपलब्ध होता है । वेदों में कथा-कहानी नहीं है । अन्यान्य ग्रन्थों के समान वेद ऊटपटांग नहीं बकते । मन्त्रद्रष्टा ऋषि प्रथम इस अति गहन विषय में विविध प्रश्न करते हैं । वेदार्थ – जिज्ञासुओं को और वेदों के प्रेमियों को प्रथम वे प्रश्न जानने चाहिए जो अतिरोचक हैं और उनसे ऋषियों के आंतरिक भाव का पूरा पता लगता । वे मन्त्र हम लोगों को महती जिज्ञासा की ओर ले जाते हैं, जिज्ञासा ही ने मनुष्य जाति को इस दशा तक पहुँचाया है, जिस देश में खोज नहीं वह मृत है । कभी अपनी उन्नति नहीं कर सकता । मन्त्र द्वारा ऋषिगण क्या-क्या विलक्षण प्रश्न करते हैं। प्रथम उनको ध्यानपूर्वक विचारिये । … Continue reading सृष्टि-विज्ञान :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

वेद में विमान की चर्चा :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

विमान एष दिवो मध्य आस्त आपप्रिवान् रोदसी अन्तरिक्षम् । स विश्वाची रभि चष्टे घृताची रन्तरो पूर्वमपरंच केतुम् । + – यजु० १७/५९ (दिवः + मध्ये) आकाश के मध्य में (एष: + विमानः आस्ते ) यह विमान के समान विद्यमान है। (रोदसी अन्तरिक्षम् ) द्युलोक, पृथिवी तथा अन्तरिक्ष, मानो, तीनों लोकों में ( आपप्रिवान् ) अच्छी प्रकार परिपूर्ण होता है अर्थात् तीनों लोकों में इसकी अहत गति है । (विश्वाची 🙂 सम्पूर्ण विश्व में गमन करनेहारा (घृताची: ) घृत:- जल अर्थात् मेघ के ऊपर भी चलने हारा (सः) वह विमानाधिष्ठित पुरुष ( पूर्वम्) इस लोक (अपरम्+च) उस परलोक ( अन्तरा ) इन दोनों के मध्य में विद्यमान (केतुम् ) प्रकाश (अभिचष्टे ) सब तरह से देखता है । यहाँ मन्त्र में … Continue reading वेद में विमान की चर्चा :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

वेद और ग्रहण:पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

चन्द्रमा का घटना – बढ़ना सूर्य की किरण चन्द्रमा पर सर्वदा पड़ती रहती है। पृथिवी घूमती है अतः पृथिवीस्थ पुरुष चन्द्रमा को सदा प्रकाशित नहीं देखता, क्योंकि पृथिवी की छाया चन्द्र में पड़ जाने से हम लोगों को प्रकाश प्रतीत नहीं होता । वेद और ग्रहण वेदों में कुछ संदिग्ध सा वर्णन आया है जिससे राहु-केतु की कथा चली है और इसको न समझ कर राहुकृत ग्रहण लोग मानने लगे, मैं उन मन्त्रों को यहाँ उद्धृत करता हूँ । यत्वा सूर्य स्वर्भानुस्तमसा विध्यदासुरः । अक्षेत्रविद् यथा मुग्धो भुवनान्यदीधयुः ॥ – ऋ०५/४० 1५ (सूर्य) हे सूर्य ! (यद्) जब (त्वा) तुमको (आसुरः ) असुरपुत्र ( स्वर्भानुः ) स्वर्भानु (तमसा ) अन्धकार से (अविध्यत् ) विद्ध अर्थात् आच्छादित कर लेता है तो … Continue reading वेद और ग्रहण:पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा – ऋषि उवाच

महर्षि दयानंद की विचारधारा ने सोयी हुई हिन्दूजाति को जगाने का काम किया। देश और घर्म को लिए अपने प्राणों की आहुति देनेवाले क्रांतिकारीओ का सैन्य खडा किया। उसमें से एक है – क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा। गुजरात के कच्छ जिले के मांडवी शहरमें इनका जन्म हुआ। वर्माजी संस्कृत अच्छी जानते थे। उनकी संस्कृत के प्रति निष्ठा देखकर स्वयं महर्षि दयानंद ने उनहें संस्कृत व्याकरण पढाना शुरु किया। महर्षि की विचारधारा से प्रभावित होकर श्यामजी कृष्ण वर्माजी राष्ट्रवाद और वैदिक धर्म के रंग में रंग गये। वह मुंबई आर्यसमाज के प्रमुख भी बने और वैदिक धर्म पर विविध व्याख्यान देते थे। महर्षि दयानंद के कहने पर वह लंडन गये। विदेश में वैदिकधर्म का प्रचार करना और भारत की स्वतंत्रता कि … Continue reading क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा – ऋषि उवाच

चन्द्र में कलङ्क पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

अब इस बात को अच्छी प्रकार से समझ सकते हैं कि लोक चन्द्रमा में कलङ्क क्यों मानते हैं । कारण इसका यह है कि जिस प्रकाशमय रूप को चन्द्रमा जगत में दिखला रहा है वह उसका अपना रूप नहीं है । जैसे कोई महादरिद्र धूर्त नर दूसरे के कपड़े माँग कर और उन्हें पहन लोक में अपने को धनिक कहे तो उसको सब कोई कलङ्क ही देगा और उसको धूर्त ही कहेगा, इसी प्रकार ज्योतिरहित चन्द्रमा में दूसरे की ज्योति देख लोग कहने लग गये कि चन्द्र में कलङ्क है । धीरे-धीरे जब इस विज्ञान को लोग भूलते गये तब इसको अनेक प्रकार से कल्पना करने लगे । किन्होंने कहा कि इसमें मृग रहता है, इस हेतु कालिमा दीखता है … Continue reading चन्द्र में कलङ्क पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

चन्द्रमा :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

अब आकर्षण आदि विषय अधिक वर्णित हो चुके, मेरे अन्यान्य ग्रन्थ देखिये | अब कुछ चन्द्र के सम्बन्ध में वक्तव्य है । इस सम्बन्ध में भी धर्मग्रन्थ बहुत ही मिथ्या बात बतलाते हैं । १ – यह चन्द्र अमृतमय है । उस अमृत को देवता और पितृगण पी लेते हैं, इसी कारण यह घटता-बढ़ता रहता है। पुराणों का गप्प तो यह है ही, परन्तु महाकवि कालिदास भी इसी असम्भव का वर्णन करते हैं- पर्य्यायपीतस्य सुरैर्हिमांशोः कलाक्षयः श्लाध्यतरोहि वृद्धेः । २ – कोई कहते हैं कि इस चन्द्रमा की गोद में एक हिरण बैठा है । इसी से इसमें लांछन दीखता है और इसी कारण इसको मृगाङ्क, शशी आदि नामों से पुकारते हैं । ३ – यह अत्रि ऋषि के नयन … Continue reading चन्द्रमा :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

आकर्षण : :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

वेदों में आकर्षण शक्ति की भी चर्चा है । लोग कहते हैं कि यह नूतन विज्ञान है । यूरोपवासी सरऐसेकन्यूटनजी ने प्रथम इसको जाना तब से यह विद्या पृथिवी पर फैली है, परन्तु यह बात नहीं । भारतवर्ष में इसकी चर्चा बहुत दिनों से विद्यमान है और चुम्बक – लोह को देख सर्वपदार्थगत आकर्षण का अनुमान किया गया था । इसका अभी तक एक प्रमाण यह है कि सिद्धान्त शिरोमणि नाम के ग्रन्थ में भास्कराचार्य ने एक प्राचीन श्लोक उद्धृत किया है, वह यह है- आकृष्टशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं गुरु स्वाभिमुखी- करोति । आकृष्यते तत्पततीव भाति समे समन्तात् कुरियं प्रतीतिः ॥ सर्वपदार्थगत एक आकर्षण शक्ति विद्यमान है, जिस शक्ति से यह पृथिवी आकाशस्थ पदार्थ को अपनी ओर करती है … Continue reading आकर्षण : :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)