बोद्ध ओर नवबोद्ध अपने आप को कितना भी संयमी ,सात्विक आहारी बताये लेकिन बोद्ध देशो को देखने पर पता चलता है कि वहा के बोद्धो में काफी हिंसक भावनाए है ,, वे लोग अपने जीभ के स्वाद के लिए किसी भी प्राणी यहाँ तक कि मानव भ्रूण को तक खाने लगे है | क्यूंकि जेसा आहार होता है वेसे ही विचार ओर व्यवहार होता है |
मह्रिषी मनु मॉस भक्षण को हिंसक ओर पाप मानते हुए कहते है –
” स्मुत्पत्ति च मॉसस्य बवबन्धो च देहिनाम |
प्रसमीक्षय निवर्तेत सर्वमॉसस्य भक्षणात || मनु . ५/४९ ||
अर्थात मॉस की उत्पति जेसे होती है उसको ,प्राणियों की हत्या ओर बंधन के कष्टों को देख सब प्रकार के मॉस भक्षण से दूर रहे |
ओर कहते है –
” अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी |
संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकेश्चेति घातका ||मनु .५/५१ ||”
मारने की आज्ञा देने वाले ,मॉस को काटने वाले पशु को मारने वाले क्रय विक्रय करने वाले ,पकाने वाले परोसने वाले खाने वाले ये सब हत्यारे ओर पापी है |
इस तरह मनु ने मॉस भक्षण को पाप बताया है ,,साथ ही मॉस व्यापार को क्यूंकि मॉस खाने की आदत ही जीवो की हिंसा को प्रेरित करती है |
हिन्दू धर्म के काशी खंड में निम्न श्लोक मिलता है – जातु मॉस न भोक्तव्यम प्राणै कंठगतैरपि (काशी खंड ,३५३ -५५ ) चाहे प्राण कंठ तक आ जाए तो भी मॉस नही खाना चाहिए |
अर्थववेद ८/६/९३ में कहा है जो अंडे मॉस खाते है उनका मै नाश करता हु |
इस तरह मॉस भक्षण को सनातन शास्त्रों में निन्दित बताया है |
अब हम बोद्ध दर्शन में मॉस भक्षण सम्बन्धित बातें देखते है –
बोद्ध ने यज्ञ में पशु वध का विरोध किया लेकिन बोद्ध मॉस भक्षण से अपने आप को दूर नही रख सके इसके बारे में सकलिक सुत्त में देवदत्त विद्रोह नामक अध्याय में आता है ,इस अध्याय में एक कथा अनुसार देवदत बोद्ध से निम्न बातो की शर्त रखता है वो इस तरह है | देवदत्त बुद्ध से कहता है ,कि संघ में निम्न नियम बनाये जाए -(१) भिक्षु वन में रहे नगर में रहे तो दोष हो |
(२) जिन्दगी भर भिक्षा मांग कर खाने वाला हो |
(३) जिंदगी भर फेंके हुए चीथड़े पहने ,जो चीवर का उपभोग करे उस पर दोष हो |
(४) जिन्दगी भर वृक्ष के नीचे रहे |
(५ ) जिन्दगी भर मॉस मच्छली न खाए जो खाए उस पर दोष हो |
इसमें से बुद्ध एक भी शर्त नही मानते है ,,हम यहाँ बाकि ४ पर बुद्ध के उत्तर न लिख ५ वे पर लिखते है कि मॉस भक्षण पर बुद्ध ने क्या कहा –
बुद्ध कहते है – है देवदत्त ! जो अदृष्ट (जिसे मरते हुए मेने न देखा हो ) अश्रुत (जिसे मरते हुए न सुना हो ) अ परिशंकित (जो संदेह में न हो ) इस तरह का मॉस खाने की मेने आज्ञा दी है |
बुद्ध ने देवदत्त के मॉस भक्षण के निषेध वाली शर्त को ठुकरा दिया ओर इससे देवदत्त बोद्ध के संघ से अलग हो गया |
इसी तरह की बात जीवक नामक भिक्षु से बोद्ध ने जीवक सुत्तन्त (२/९/५ ) में कही है जीवक से बुद्ध कहते है –
जिस जीव का अपने लिए न मारा जाना हो | जिसे मारे हुए न देखा हो , न सुना हो न शंका हो | ऐसे मॉस को खाने का मेने आज्ञा दी है |
बोद्ध के उपरोक्त कथन को देखा जाए तो किसी दूकान से मॉस खाया जा सकता है ,,क्यूंकि दूर किसी होटल आदि पर पकाए हुए मॉस की किसी दूर से आये खाने वाले को कोई जानकारी नही होती |
एक स्थान से दुसरे स्थान की यात्रा में अगर कोई मासाहार भोजनालय है तो वहा मॉस खा सकते है क्यूंकि खाने वाले ने न प्राणी को कटते देखा है ,न ही वो उसके लिए काटा है न ही वो उसने काटते हुए सुना है |
इस तरह बुद्ध ने हिंसा का एक दूसरा रास्ता खोल दिया | ओर असयम को जो कि स्वाद से है को बढ़ावा दिया |
इस तरह एक जातक कथा में भी मॉस भक्षण का उलेख मिलता है – जिसके अनुसार एक भिक्षु के पास एक चील द्वरा छुटा हुआ कोई मॉस गिरता है भिक्षु बुद्ध से कहता है कि इसका क्या करू बुद्ध उसे वह मॉस खाने को कहते है |
इस तरह बोद्ध ग्रंथो में जगह जगह एक अलग प्रकार की हिंसा का उलेख मिलता है जो उनके अहिंसक ओर संयमी होने के दावे पर प्रश्न चिन्ह लगाता है |
शायद बुद्ध को इस बात पर ध्यान देना चाहिय था कि जेसा आहार वेसा ही विचार ओर व्यवहार हो जाता है | मॉस भक्षण किसी भी प्रकार का जीव हत्या को बढ़ावा देता है |
संधर्भित पुस्तके एवम ग्रन्थ – (१) मनुस्मृति – सुरेन्द्रकुमार जी
(२) मझिम निकाय – राहुल सांस्क्रतायन
(३ ) बुद्धचर्या – राहुल सांस्क्रतायन
(४) दीर्घ निकाय – राहुल सांस्कृतायन
अति महत्वपूर्ण लेख !!!
आपका धन्यवाद ….
OM..
ARYAVAR, NAMASTE..
“हिन्दू धर्म के काशी खंड” YEH KOI PUSHTAK HAI?
AUR “अर्थववेद ८/६/९३ में कहा है जो अंडे मॉस खाते है उनका मै नाश करता हु|” ATHARVA VEDA 8-6 ME TO KEVAL 26 MANTR HAI FIR 93 KAISE?
KRIPAYAA PRASTA KAREN..
DHANYAVAAD..
namasate arya ji
is tarah kaa koi mantra nahi hai ji ved me… jisane bhi aapkojaankaari di hai unhone khud apane man se ek naya ved likh daala hai…
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OM
ARYAVAR, NAMASTE
YEH AUR KISINE NAHIN ARYAMANTAVYA KI IS LEKH “बोद्ध ग्रंथो में मासाहार (झूटी अंहिसावाद )” ME HAI..IS TAHARAH KI LEKH PRAKASHAN KARNE SE PAHLE JAANCH AKRNA JARURI THAA
DHANYAVAAD
namaste ji…
article ke naam se hi khandan hota hai ki usme uska khandan kiya gaya hai ji….yah us pustak kaa khandan kiya gaya hai… usmme apane man se aisa likhaa gaya hogaa.. tabbhi us pustak kaa khandan ki gayi hai ji…