चन्द्र में कलङ्क पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

अब इस बात को अच्छी प्रकार से समझ सकते हैं कि लोक चन्द्रमा में कलङ्क क्यों मानते हैं । कारण इसका यह है कि जिस प्रकाशमय रूप को चन्द्रमा जगत में दिखला रहा है वह उसका अपना रूप नहीं है । जैसे कोई महादरिद्र धूर्त नर दूसरे के कपड़े माँग कर और उन्हें पहन लोक में अपने को धनिक कहे तो उसको सब कोई कलङ्क ही देगा और उसको धूर्त ही कहेगा, इसी प्रकार ज्योतिरहित चन्द्रमा में दूसरे की ज्योति देख लोग कहने लग गये कि चन्द्र में कलङ्क है । धीरे-धीरे जब इस विज्ञान को लोग भूलते गये तब इसको अनेक प्रकार से कल्पना करने लगे । किन्होंने कहा कि इसमें मृग रहता है, इस हेतु कालिमा दीखता है । किन्होंने कहा कि यह समुद्र से उत्पन्न हुआ है और समुद्र में विष भी रहा करता था, अतः इन दोनों के संयोग होने में चन्द्रमा का बहुत सा हिस्सा कृष्ण (काला) प्रतीत होता है । कोई पौराणिक यह कहते हैं कि गुरु पत्नी तारा के साथ व्यभिचार करने से चन्द्र लाञ्छित माना गया है। इस तरह चन्द्र के सम्बन्ध में विविध कल्पनाएँ देश में प्रचलित हैं, वे सब ही मिथ्या हैं ।

मृगाङ्क शशी – मृगाङ्क चन्द्र क्यों कहाता है ? इसका भी यथार्थ कारण यह था कि मृग नाम भी सूर्य का है । वह सूर्य अपनी किरण द्वारा चन्द्र की गोद में रहता है, अतः चन्द्र के नाम मृगाङ्क और शशी आदि हुए हैं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *