Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेद पढ़ना, वेद पढ़ाना, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान देना और दान लेना, यह छह कर्म ब्राह्मण के लिये बनाये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(ब्राह्मणानाम्) ब्राह्मणों के अध्ययनम् अध्यापनम् पढ़ना - पढ़ाना तथा तथा यजनं याजनम् यज्ञ करना - कराना, दानं, च प्रतिग्रहम् एव दान देना और लेना, ये छः कर्म अकल्पयत् हैं ।
टिप्पणी :
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
‘‘एक निष्कपट होके प्रीति से पुरूष पुरूषों को और स्त्री स्त्रियों को पढ़ावे - दो - पूर्ण विद्या पढें, तीन - अग्निहोत्रादि यज्ञ करें, चार - यज्ञ करावें, पांच - विद्या अथव सुवर्ण आदि का सुपात्रों को दान देवें, छठा - न्याय से धनोपार्जन करने वाले गृहस्थों से दान लेवें भी ।’’
(सं० वि० गृहाश्रम प्रकरण)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अघ्यापनम) पढाना (अघ्ययनम) पढना (यजनम) यज्ञ करना (याजन तथा) और यज्ञ करना (दान) दान देना (प्रतिग्रह च एव) और दान लेना (ब्राह्मणाम) ब्राह्मणो के धर्म (अकल्पयत) निश्चित किये।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ब्राह्मणों के पढ़ना, यज्ञ करना, कराना, दान देना, और लेना-ये छह कर्म निर्दिष्ट किये।