Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इस सारे संसार का कार्य चलाने के हेतु ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण शरीर के चार भाग मुख, वाहु, उरु और पाँव के अनुसार बनाये। और चारों वर्णों के काम पृथक्-पृथक् निर्धारित किये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(अस्य सर्वस्य सर्गस्य) इस ५ - ८० पर्यन्त श्लोकों में वर्णित समस्त संसार की (गुप्त्यर्थम्) गुप्ति अर्थात् सुरक्षा, व्यवस्था एवं समृद्धि के लिए (सः महाद्युतिः) महातेजस्वी परमात्मा ने मुख - बाहुं - ऊरू - पद् - जानाम् मुख, बाहु जघा और पैर की तुलना से निर्मितों के अर्थात् क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्णों के पृथक् (कर्माणि अकल्पयत्) पृथक् - पृथक् कर्म बनाये ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(सर्वस्य तु सर्गम्य) सब सृष्टि की (गुप्ति अर्धम) रक्षा के लिए (य महाधुति:) उस तेजस्वी ब्रहा्र ने (मुख बाहु उरू पत जानाम) मुख बाहु जंधा और पैर के स्थानपत्र ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्रो के (पृथक कर्माणि अकत्पयत) अलग अलग कर्म बनाये
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उस महातेजस्वी परमेष्ठी ने इस सब सृष्टि की रक्षा के लिए मुख, बाहु, जाँघ और पारद सद्श गुणधर्मों से उत्पन्न वर्णों के पृथक्-पृथक् कर्म आदिष्ट किये।