Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो ब्राह्मण तप तथा वेदाभ्यास नहीं करता है और दान लिया करता है वह दानदाता सहित डूब जाता है जैसे पानी में पत्थर की नाव।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. एक - ब्रह्मचर्य - सत्यभाषणादि तपरहित, दूसरा - बिना पढ़ा हुआ, तीसरा - अत्यन्त धर्मार्थ दूसरों से दान लेने वाला, ये तीनों पत्थर की नौका से समुद्र में तैरने के समान अपने दुष्ट कर्मों के साथ ही दुःखसागर में डूबते हैं ।
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
६१-पहला ब्रह्मचर्य सत्यभाषणादि तपरहित, दूसरा बिना पढ़ा हुआ, और तीसरा दूसरों से अत्यन्त दान लेने वाला, ये तीनों पतथर की नौका से समुद्र में तरने के समान अपने उन दुष्टकर्मों के साथ ही दुःखसागर में डूबते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अतपातुः) तप रहित (अनधीयानः) बे-पढ़ा, (प्रतिग्रह रुचिः) दान का इच्छुक (द्विजः) ब्राह्मण (अम्भसि अश्मप्लवेन इव) समुद्र में पत्थर की नाव के समान (सह तेन एव) उस दान के साथ साथ स्वयं भी (मज्जति) डूब जाता है।