Manu Smriti
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न पाणिपादचपलो न नेत्रचपलोऽनृजुः ।न स्याद्वाक्चपलश्चैव न परद्रोहकर्मधीः ।।4/177

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
न तो परिनिन्दावाद में सम्मिलित हों, न हाथ, पाँव, वाणी व नेत्र की चपलता करें, क्योंकि यह सब कार्य दुष्ट प्रकृति के प्रकट करने वाले हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. हाथ - पैरों से चंचलता के कार्य न करे आंखों से चंचलतायुक्त काम न करे कुटिलता न करे वाणी से चपलता न करे और दूसरों की हानि या द्वेष के कर्मों में मन लगाने वाला न बने ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
५८-हाथ, पांव, नेत्र और वाणी की चपलता से रहित हो, कुटिल न हो, और दूसरे की हानि करने वाला काम या विचार न करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(न पाणि पाद चपलः) हाथ और पैर से चंचलता न करें, (न नेत्र चपलः) न आँख से चपलता करें। (अनृजुः) और न बुरा काम करें। (न स्यात् वाक् चपलः च एव) वाणी से भी चपलता न करें। (न परद्रोह-कर्मधीः) न दूसरों से द्रोह करने का विचार करें।
 
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