Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मंगलाचार युक्त बाह्मभ्यन्तर पवित्रता सहित जितेन्द्रिय हो जप वा हवन करें, आलस्य न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कल्याणकारी कार्यों में लगा रहने वाला या श्रेष्ठ आचरण वाला उन्नति के लिए सदा प्रयत्नशील जितेन्द्रिय रहे और प्रतिदिन आलस्यरहित होकर जपोपासना करे तथा हवन करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
४७-एवं, गृहस्थ मङ्गल आचारों से युक्त, पवित्र हृदय और जितेन्द्रिय होवे। और, वह आलस्यरहित होकर नित्य सन्ध्या तथा अग्निहोत्र किया करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(मंगलाचारः युक्तः स्यात्) सुन्दर चाल-चलन रक्खें। (प्रयत आत्मा) सदा कोशिश करता रहे। (जित-इन्द्रियः) और इन्द्रियों को जीत लें। उनको वश में रक्खें। (जपेत् च) जप करें (जुहुयात् च एव नित्यम् अग्रिम) सदा अग्निहोत्र करें (अतन्द्रितः) आलस्य छोड़कर।