Manu Smriti
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नात्मानं अवमन्येत पुर्वाभिरसमृद्धिभिः ।आ मृत्योः श्रियं अन्विच्छेन्नैनां मन्येत दुर्लभाम् ।।4/137

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दरिद्रता (कंगाली) में अपनी अवमानना (अवहेलना) न करें। मृत्युपर्यन्त धन की कामना रखें व धन प्राप्ति दुर्लभ न जानें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गृहस्थ द्विज कभी प्रथम पुष्कल धनी होके पश्चात् दरिद्र हो जायें, उससे अपने आत्मा का अपमान न करें कि ‘हाय हम निर्धन हो गये’ इत्यादि विलाप भी न करें, किन्तु मृत्युपर्यन्त लक्ष्मी की उन्नति में पुरूषार्थ किया करें, और लक्ष्मी को दुर्लभ न समझें । (सं० वि० गृ० प्र०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
४४-यदि गृहस्थ पहले कभी पुष्कल धनी होके पश्चात् दरिद्र हो गया हो, अथवा यत्न करने पर भी धन की प्राप्ति न हुई हो, तो उसे चाहिये कि वह उन पहली दरिद्रतायों से अपने आत्मा का अपमान न करे। किन्तु मृत्यु पर्यन्त लक्ष्मी की उन्नति में पुरुषार्थ किया करे, और लक्ष्मी को दुर्लभ न समझे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(न आत्मानम् अवमन्येत पूर्वाभिः असमृद्धिभिः) पहली असफलताओं से अपने आप को तुच्छ न समझें। अर्थात् यदि किसी काम में सफलता न हो तो निराश होकर अपने को घृणित और नीच न समझे। (आमृत्योः श्रियम् अन्विच्छेत्) मृत्यु-पर्यन्त भी अर्थात् सम्पत्ति के लिये यत्न करें। (न एनां मन्येत् दुर्लभाम्) इसको कभी दुर्लभ न समझें। अर्थात् यत्न करता जाय। कभी न कभी तो फल मिलेगा ही।
 
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