Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अग्नि के पश्चात् जल बनाया, जिसका गुण रस है। और जल से पृथ्वी को रचा, जिसका गुण गन्ध है। संसार के प्रारम्भ से यही स्वभाव रहता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(च )और (ज्योतिषः विकुर्वाणात्) अग्नि के विकारोत्पादक अंश से (रसगुणाः आपः स्मृताः) ‘रस’ गुण वाला जल उत्पन्न होता है, और अद्भ्यः जल से गन्धगुणा भूमिः ‘गन्ध’ गुण वाली भूमि उत्पन्न होती है (इति एषा सृष्टि आदितः) यह इस प्रकार प्रारम्भ से लेकर (१।१४ से) यहां तक वर्णित सृष्टि उत्पन्न होने की प्रक्रिया है ।