Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यह ब्रह्मा अपने दिन में काय्र्य करते हैं और रात्रि में विश्राम करते हैं। जब जाग्रत होते हैं तो संकल्प-विकल्प रूप मन को सृष्टि रचने की आज्ञा देते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(प्रसुप्तः सः) वह प्रलय - अवस्था में सोया हुआ - (सा (१।५२-५७) परमात्मा (तस्य अहर्निशस्य अन्ते) उस (१।६८-७२) दिन - रात के बाद (प्रति बुध्यते) जागता है - सृष्टयु त्पत्ति में प्रवृत्त होता है (च) और प्रतिबुद्धः जागकर (सद् - असद् - आत्मकम्) जो कारणरूप में विद्यमान रहे और जो विकारी अंश से कार्यरूप में अविद्यमान रहे, ऐसे स्वभाव वाले (मनः) ‘महत्’ नामक प्रकृति के आद्यकार्यतत्त्व की सृजति सृष्टि करता है ।