Manu Smriti
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तद्वै युगसहस्रान्तं ब्राह्मं पुण्यं अहर्विदुः ।रात्रिं च तावतीं एव तेऽहोरात्रविदो जनाः । ।1/73

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्रह्मा के सहस्र युग के तुल्य परब्रह्म का एक दिन होता है। सो वह दिन बड़ा पवित्र है और उतनी ही रात्रि भी होती है इसे रात्रि दिन के ज्ञाताओं ने कहा।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो लोग तत् युगसहस्त्रान्तं ब्राह्म पुण्यम् अहः उस एक हजार दिव्य युगों के परमात्मा के पवित्र दिन को च और तावतीं एव रात्रिम् उतने ही युगों की परमात्मा की रात्रि को विदुः समझते हैं ते वे ही वै अहोरात्रविदः जनाः वास्तव में दिन - रात - सृष्टि - प्रलय के काल के वेत्ता लोग हैं ।
टिप्पणी :
महर्षिदयानन्द ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में १।६८ से ७३ श्लोकों को उद्धृत करके उनका भाव निम्न प्रकार प्रस्तुत किया है - प्रश्न - वेदों की उत्पत्ति में कितने वर्ष हो गये हैं ? उत्तर - एक वृन्द्र, छानवे करोड़ , आठ लाख, बावन हजार, नव सौ, छहत्तर अर्थात् १,९६,०८,५२,९७६ वर्ष वेदों की और जगत् की उत्पत्ति में हो गये हैं और यह संवत् ७७ सतहत्तरवां वत्र्त रहा है । प्रश्न - यह कैसे निश्चय होय कि इतने ही वर्ष वेद और जगत् की उत्पत्ति में बीत गये हैं ? उत्तर - यह जो वर्तमान सृष्टि है इसमें सातवें (७) वैवस्वत मनु का वत्र्तमान है । इससे पूर्व छः मन्वन्तर हो चुके हैं - स्वायंभुव १, स्वारोचिष २, औत्तमि ३, तामस ४, चाक्षुष ६, ये छः तो बीत गये हैं और ७ (सातवां) वैवस्वत वत्र्त रहा है और सावर्णि आदि ७ (सात) मन्वतर आगे भोगेगें । ये सब मिलके १४ (चैदह) मन्वन्तर होते हैं और एकहत्तर चतुर्युगियों का नाम मन्वन्तर धरा गया है, सो उस की गणना इस प्रकार से है कि (१७२८०००) सत्रह लाख अठाईस हजार वर्षों का सतयुग रक्खा है; (१२९६०००) बारह लाख, छानवे हजार वर्षों का नाम त्रेता;(८६४०००) आठ लाख चैंसठ हजार वर्षों का नाम द्वापर और (४३२०००) चार लाख, बत्तीस हजार वर्षों का नाम कलियुग रक्खा है तथा आर्यों ने एक क्षण और निमेष से लेके एक वर्ष पर्यन्त भी काल की सूक्ष्म और स्थूल संज्ञा बांधी है और इन चारों युगों के (४३२००००) तितालीसलाख, बीस हजार वर्ष होते हैं , जिनका चतुर्युगी नाम है । एकहत्तर (७१) चतुर्युगियों के अर्थात् (३०६७२००००) तीस करोड़, सरसठ लाख, बीस हजार वर्षों की एक मन्वन्तर संज्ञा की है और ऐसे - ऐसे छः मन्वन्तर मिलकर अर्थात् (१८४०३२००००) एक अर्ब, चैरासी करोड़, तीन लाख, बीस हजार वर्ष हुए और सातवें मन्वन्तर के भोग में यह (२८) अठाईसवीं चतुर्युगी है । इस चतुर्युगी में कलियुग के (४९७६) चार हजार, नौ सौ छहत्तर वर्षों का तो भोग हो चुका है और बाकी (४२७०२४) चार लाख, सत्ताईस हजार चौबीस वर्षों का भोग होने वाला है । जानना चाहिए कि (१२०५३२९७६) बारह करोड़, पांच लाख, बत्तीस हजार, नव सौ छहत्तर वर्ष तो वैवस्वत मनु के भोग हो चुके हैं और (१८६१८७०२४) अठारह करोड़, एकसठ लाख, सत्तासी हजार, चौबीस वर्ष भोगने के बाकी रहे हैं । इनमें से यह वर्तमान वर्ष (७७) सतहत्तरवाँ है जिसको आर्यलोग विक्रम का (१९३३) उन्नीस सौ तेतीसवां संवत् कहते हैं । जो पूर्व चतुर्युगी लिख आये हैं उन एक हजार चतुर्युगियों की ब्राह्मदिन संज्ञा रखी है और उतनी ही चतुर्युगियों की रात्रि संज्ञा जाननी चाहिए । सो सृष्टि की उत्पत्ति करके हजार चतुर्युगी पर्यन्त ईश्वर इस को बना रखता है, इसी का नाम ब्राह्मदिन रक्खा है, और हजार चतुर्युगी पर्यन्त सृष्टि को मिटाके प्रलय अर्थात् कारण में लीन रखता है , उस का नाम ब्राह्मरात्रि रक्खा है अर्थात् सृष्टि के वर्तमान होने का नाम दिन और प्रलय होने का नाम रात्रि है । यह जो वर्तमान ब्राह्मदिन है, इसके (१,९६,०८,५२,९७६) एक अर्ब, छानवे करोड़, आठ लाख, बावन हजार, नव सौ छहत्तर वर्ष इस सृष्टि की तथा वेदों की उत्पत्ति में भी व्यतीत हुए हैं और (२३३३२२७०२४) दो अर्ब, तेतीस करोड़, बत्तीस लाख , सत्ताईस हजार चौबीस वर्ष इस सृष्टि को भोग करने के बाकी रहे हैं । इनमें से अन्त का यह चौबीसवां वर्ष भोग रहा है । आगे आने वाले भोग के वर्षों में से एक - एक घटाते जाना और गत वर्षों में क्रम से एक - एक वर्ष मिलाते जाना चाहिये । जैसे आज पर्यन्त घटाते बढ़ाते आये हैं । (ऋ० भू० वेदात्पत्ति विषय)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, उस १००० युग के ब्राह्म पुण्यदिन को और उतनी ही ब्राह्मरात्रि को जो उन जानते हैं वे अहोरात्र के (सृष्टिकाल और प्रलयकाल के) वेत्ता हैं।१
टिप्पणी :
१. मानुष वर्ष में उपर्युक्त सृष्टि व प्रलय के काल का परिवर्तन इस प्रकार होगाः-४३२००००×१०००=४३२००००००० अर्थात् ४ अरब ३२ करोड़ वर्ष की सृष्टि की आयु है; और उतनी ही आयु प्रलय की है। क्योंकि ‘सर्वेषाँ तु स नामानि’ आदि चौथे श्लोक में वेदोत्पत्ति सृष्टि की आदि में वर्णित की गयी है, अतः वेदोत्पत्ति का काल भी सृष्टिकाल जितना ही समझना चाहिए। अथर्ववेद ८ म काण्ड, २ य सूक्त के २१ वें मन्त्र में सृष्टि व प्रलय के काल का प्रतिपादन इस प्रकार किया है- शंत तेऽयुतं हायनान् द्वे युगे त्रीणि चत्वारि कृण्मः। इन्द्राग्नी विश्वेदेवास्ते न मन्यन्तामहृणीयमानाः॥ (ते) उन अहोरात्रों अर्थात् सृष्टि और प्रलय को (शतं अयुतं हायनान्) १० हजार वर्ष गुणा १०० अर्थात् १० लाख तक शून्यों से पहले (द्वे त्रीणि चत्वारि युगे) क्रमशः २, ३, ४ मिलाने पर ४,३२,००००००० वर्ष की आयु वाले (कृण्मः) करता हूं। (इन्द्राग्नी) ब्राह्मण और क्षत्रिय (विश्वेदेवाः) तथा वैश्य (अहृणीयमानाः) ये द्विज शान्तचित्त होकर (ते) उन सृष्टिप्रलय रूपी अहोरात्रों का (मन्यन्तां) मनन करें। इसी प्रकार यजुर्वेद अ० १५ मन्त्र ६५ में कहा है-‘सहस्रस्य प्रमा असि’। हे परमेश्वर! तू सहस्र महायुग (१००० चतुर्युगी) परिमित सर्ग और प्रलय का प्रमाता या निर्माता है।
 
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