Manu Smriti
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दैविकानां युगानां तु सहस्रं परिसंख्यया ।ब्राह्मं एकं अहर्ज्ञेयं तावतीं रात्रिं एव च । ।1/72

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
देवताओं के सहस्र (हजार) युग के तुल्य ब्रह्माजी का एक दिन होता है और इतनी ही रात्रि होती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
.( दैविकानां युगानाम् तु) देवयुगों को (सहस्त्रं परिसंख्यया) हजार से गुणा करने पर जो कालपरिमाण निकलता है , जैसे - चार मानुषयुगों के दिव्यवर्ष १२००० होते हैं उनको हजार से गुणा करने पर १,२०,००,००० दिव्यवर्षों का (ब्राह्मम्) परमात्मा का (एकं अहः) एक दिन (च) और (तावतीं रात्रिम्) उतने ही दिव्यवर्षों की उसकी एक रात (ज्ञेयम्) समझनी चाहिए ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१००० दैविक युगों का एक ब्राह्मदिन और उतनी ही ब्राह्म रात्रि जाननी चाहिए।
 
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