Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यह जो चार युगों की संख्या कही है, इसका बारह सहस्र गुण अधिक देवताओं का युग होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यद् एतत् जो यह आदौ पहले (६९-७० में) चतुर्युगम् चारों युगों को परिसंख्यातम् कालपरिमाण के रूप में गिनाया है एतद् यह द्वादश- साहस्त्रम् बारह हजार दिव्य वर्षों का काल मनुष्यों का एक चतुर्युगी का काल देवानाम् देवताओं का युगम् एक युग उच्यते कहा जाता है ।
टिप्पणी :
स्पष्टीकरण - १२००० दिव्य वर्षों की एक चतुर्युगी होती है । उसे मानुष वर्षों में बदलने के लिए ३६० से गुणा करने पर १२००० × ३६० त्र ४३,२०,००० मानुष वर्षों की एक चतुर्युगी होती है । दोनों श्लोकों के कालपरिमाण को तालिका के रूप में इस प्रकार रखा जा सकता है -
दिव्यवर्ष संध्यावर्ष संध्यांशवर्ष कुल दिव्यवर्षों का गुणा करने से मानुष वर्षो का युगनाम
४०००+ ४००+ ४००= ४८००× ३६०= १७,२८,००० सतयुग
३०००+ ३००+ ३००= ३६००× ३६०= १२,९६,००० त्रेतायुग
२०००+ २००+ २००= २४००× ३६०= ८,६४,००० द्वापरयुग
१०००+ १००+ १००= १२००× ३६०= ४,३२,००० कलियुग
१००००+ १०००+ १०००= १२०००× ३६०= ४३,२०,००० एकचतुर्युगी
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
अभी पहले जो यह चारों युगों की गणना की गयी है, वह १२००० वर्षों का एक देवों का युग कहलाता है।