Manu Smriti
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तां विवर्जयतस्तस्य रजसा समभिप्लुताम् ।प्रज्ञा तेजो बलं चक्षुरायुश्चैव प्रवर्धते ।।4/42

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो पुरुष रजोदर्शन वाली स्त्री से भोग नहीं करता है उसको तेज, बल, चक्षु तथा आयु इन सब की वृद्धि होती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
रज निकलती हुई अर्थात् रजस्वला स्त्री से उपभोग न करने वाले उस मनुष्य के बुद्धि, तेज, बल, नेत्रज्योति और आयु ये सब बढ़ते हैं ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
और, जो पुरुष उस रजस्वला का संग नहीं करता, उसकी बुद्धि, तेज, बल, द्ष्टि और आयु बढ़ती है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो रजस्वला स्त्री से भोग नहीं करता उसकी बुद्धि, तेज, बल, आँखों की रोशनी तथा आयु बढ़ती है।
 
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