Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
बैठने के हेतु आसन, खाने हेतु भोजन, सोने के हेतु शय्या, जल, फल, तथा मूल आदि से शक्त्यनुसार आतिथ्य पाये बिना किसी गृहस्थी के गृह पर कोई अतिथि न रहना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. इस गृहस्थी के घर में कोई भी अतिथि शक्ति के अनुसार आसन, भोजन, बिछौना आदि से अथवा जल, कन्दमूल और फल आदि से बिना सत्कार किये न रहे अर्थात् यथाशक्तिसब का सत्कार करना चाहिये ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
११-गृहस्थ के घर में आसन भोजन शय्या, तथा जल कन्द-मूल व फल से यथाशक्ति कोई अतिथि असत्कृत न रहने पावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
आसन + अशन + शय्याभिः) आसन, खाना, बिछौना, (अद्भिः) जल (मूल फलेन वा) और कन्द मूल फल आदि से (अस्य कः चित् गेहे) इसके घर में कोई भी (शक्तितः) जहाँ तक हो सके (अनर्चितः अतिथिः) अतिथि बिना सत्कार के न रहे।