Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अठारह पल का एक काष्ठा, 30 काष्ठा की एक कला, 30 कला का एक मुहूर्त और 30 मुहूर्त का एक दिन-रात होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(दश च अष्टौ च) दश और आठ मिलाकर अर्थात् अठारह (निमेषाः) निमेषों (पलक झपकने का समय) की (काष्ठा) १ काष्ठा होती है (ताः त्रिंशत्तु) उन तीन काष्ठाओं की (कला) १ कला होती है (त्रिंशत्कलाः) तीस कलाओं का (मुहूत्र्त स्यात्) एक मुहूत्र्त (४८ मिनट का) होता है , और (तावतः तु) उतने ही अर्थात् ३० मुहूत्र्तों के (अहोरात्रम्) एक दिन - रात होते हैं ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१०+८=१८ निमेषों (आंख का मीचना) की १ काष्ठा, ३० काष्ठाओं की १ कला, ३० कलाओं का १ मुहूर्त, और ३० मुहूर्तों का एक अहरोत्र (दिनरात) होता है।१
१. इसके अनुसार आजकल के काल विभाग की तुलना इस प्रकार बैठती है- सैकण्ड का १ निमेष, सैकण्ड की १ काष्ठा, १ मि० ३६ सै० की १ कला, ४८ मिनिट का मुहूर्त, और २४ घण्टे का १ अहरोत्र।