Manu Smriti
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युगपत्तु प्रलीयन्ते यदा तस्मिन्महात्मनि ।तदायं सर्वभूतात्मा सुखं स्वपिति निर्वृतः । ।1/54

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जब सब इन्द्रियाँ और मन जीवात्मा में लय हो जाते हैं, तब यह पंचभूतों का आत्मा आनन्द से सोता है अर्थात् तब महाप्रलय होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(तस्मिन् महात्मनि) उस सर्वव्यापक परमात्मा के आश्रय में (यदा) जब (युगपत् तु प्रलीयन्ते) एक साथ ही सब प्राणी चेष्टाहीन होकर लीन हो जाते हैं (तदा) तब (अयं सर्वभूतात्मा) यह सब प्राणियों का आश्रयस्थान परमात्मा (निर्वृतः) सृष्टि - संचालन के कार्यों से निवृत्त हुआ - हुआ (सुखं स्वपिति) सुख पूर्वक सोता है ।
 
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