Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
स्त्री, रत्न, विद्या, धर्म, शौच (पवित्रता व उज्वलता) सुभाषण, विविध शिष्य इन सबको जहां से मिले लेना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
स्त्रियः उत्तम स्त्री रत्नानि नाना प्रकार के रत्न विद्या विद्या धर्मः सत्य शौचम् पवित्रता सुभाषितम् श्रेष्ठभाषण च और विविधानि शिल्पानि नाना प्रकार की शिल्पविद्या अर्थात् कारीगरी सर्वतः समादेयानि सब देश तथा सब मनुष्यों से ग्रहण करें ।
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, उत्तम स्त्री, नाना प्रकार के रत्न, विद्या, सत्य, पवित्रता, श्रेष्ठ भाषण और नाना प्रकार की शिल्प विद्या अर्थात् कारीगरी सब देश और सब मनुष्यों से ग्राह्य हैं। अतः ब्रह्मचारी देश देश पर्यटन कर उत्तम गुण सीखे।