Manu Smriti
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गुरोर्यत्र परिवादो निन्दा वापि प्रवर्तते ।कर्णौ तत्र पिधातव्यौ गन्तव्यं वा ततोऽन्यतः ।2/200

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जहाँ गुरु को सत्व या अनत दोषारोपण होता हो वा निन्दा होती हो वहाँ अपने कान बन्द करलें अथवा वहाँ से उठ जावें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यत्र जहां गुरोः परीवादः वाऽपि निन्दा प्रवत्र्तते गुरू की बुराई अथवा निन्दा हो रही हो तत्र वहां कर्णौं पिधातव्यौ अपने कान बन्द कर लेने चाहिए अर्थात् उसे नहीं सुनना चाहिए वा अथवा ततः अन्यतः गन्तव्यम् उस जगह से कहीं अन्यत्र चला जाना चाहिए ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(१३) जहां गुरु का उपहास व निन्दा हो रही हो, वहां कान बन्द कर लेने चाहियें वा वहां से उठ जाना चाहिए।
 
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