Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जैसे बसन्त आदि ऋतु अपने-अपने समय पर अपने गुणों को प्रकट करती हैं, उसी प्रकार सब प्राणी अपने अपने कर्मों में प्रवृत्त होते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. (यथा) जैसे (ऋतवः) ऋतुएं (ऋतुपर्यये) ऋतु - परिवर्तन होने पर (स्वयम् एव) अपने आप ही (ऋतुलिंगानि) अपने - अपने ऋतुचिन्हों - जैसे, वसन्त आने पर कुसुम - विकास, आम्रमंज्जरी आदि को (अभिपद्यन्ते) प्राप्त करती हैं (तथा) उसी प्रकार (देहिनः) देहधारी प्राणी भी (स्वानि - स्वानि कर्माणि) अपने - अपने कर्मों को प्राप्त करते हैं ।