Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अकेला सोवें, वीर्य को न गिरावें, और जो कोई वीर्य को गिराता है वह अपना व्रत नाश कर देता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सर्वत्र एकः शयीत सर्वत्र एकाकी सोवे रेतः क्वचित् न स्कन्दयेत् वीर्यस्खलित कभी न करे कामात् हि रेतः स्कन्दयन् काम से वीर्यस्खलित कर दे तो जानो कि आत्मनः व्रतं हिनस्ति अपने ब्रह्मचर्य व्रत का नाश कर दिया ।
(स० प्र० तृतीय समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(६) ब्रह्मचारी सर्वत्र एकाकी सोवे (किसी दूसरे के साथ एक ही विस्तर पर इकट्ठे न सोना चाहिए) और कभी भी वीर्य स्खलित न करे। जो कामना से वीर्य स्खलित करता है, वह अपने ब्रह्मचर्य-व्रत का नाश करता है।