Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
द्यूत (जुआ), किसी का मिथ्या दोष वर्णन करना, स्त्री दर्शन, स्त्री सम्भारण, दूसरे की कुचेष्ठा, इन सब बातों से दूर रहें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
द्यूतम् द्यूत जनवादम् जिस किसी की कथा परिवादम् निन्दा अनृतम् मिथ्याभाषण स्त्रीणां प्रेक्षण - आलम्भम् स्त्रियों का दर्शन, आश्रय परस्य उपघातम् दूसरे की हानि आदि कुकर्मों को सदा छोड़ देवें ।
(स० प्र० तृतीय समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(५) ब्रह्मचारी जूआ, जिस किसी की कथा (वृथा वकवास) निन्दा, मिथ्याभाषण, स्त्रियों की ओर कुद्ष्टि से देखना, उनका आश्रय लेना और दूसरे की हानि करना, इन्हें छोड़ देवे।