Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
हिंस्राहिंस्रे मृदुक्रूरे धर्माधर्मावृतानृते ।यद्यस्य सोऽदधात्सर्गे तत्तस्य स्वयं आविशत् । ।1/29

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
हिंस्र और अहिंस्र, मृदु और कठोर आदि गुण वाले पशुओं में ये गुण अनादि काल से चले आते हैं, केवल कर्मों का परिवर्तन मनुष्य को दिया है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(हिंस्त्र - अहिंस्त्रे) हिंसा (सिंह, व्याघ्र आदि का) अहिंसा (मृग आदि का) (मृदु - क्रूरे) दयायुक्त और कठोरतायुक्त (धर्म - अधर्मो) धर्म तथा अधर्म (अनृत - ऋते) असत्य और सत्य (यस्य) जिस प्राणी का (यत्) जो कर्म (सर्गे) सृष्टि के प्रारम्भ में (सः अदधात्) उस परमात्मा ने धारण कराना था (तस्य तत्) उसको वही कर्म (स्वयम्) अपने आप ही (आविशत्) प्राप्त हो गया ।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS