Manu Smriti
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अहिंसयैव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुशासनम् ।वाक्चैव मधुरा श्लक्ष्णा प्रयोज्या धर्मं इच्छता ।2/159

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ऐसे काम की आज्ञा देनी चाहिये जिसमें किसी जीव को कष्ट न हो। और धर्मात्मा पुरुष को मीठी वाणी बोलनी चाहिए।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अहिंसया एव भूतानाम् विद्वान् और विद्यार्थियों को योग्य है कि वैरबुद्धि छोड़के सब मनुष्यों के श्रेयः अनुशासनं कार्यम् कल्याण के मार्ग का उपदेश करें च और मधुरा श्लक्ष्णा वाक् प्रयोज्या उपदेष्टा मधुर, सुशीलतायुक्त वाणी बोलें धर्मम् इच्छता जो धर्म की उन्नति चाहे वह सदा सत्य में चले और सत्य ही का उपदेश करे । (स० प्र० तृतीय समु०)
टिप्पणी :
‘‘इसलिये विद्या पढ़ विद्वान् धर्मात्मा होकर निर्वैरता से सब प्राणियों के कल्याण का उपदेश करे और उपदेश में वाणी मधुर और कोमल बोले । जो सत्योपदेश से धर्म की वृद्धि और अधर्म का नाश करते हैं वे पुरूष धन्य हैं ।’’ (स० प्र० दशम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(१५) ब्रह्मचारी को चाहिए कि वह वैरबुद्धि को छोड़कर प्राणियों को कल्याण की बात कहे और उस बातचीत में वाणी मधुर तथा कोमल प्रयुक्त करे, जिससे धर्म की वृद्धि होती है।
 
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