Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
कर्मणां च विवेकार्थं धर्माधर्मौ व्यवेचयत् ।द्वन्द्वैरयोजयच्चेमाः सुखदुःखादिभिः प्रजाः । ।1/26

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कर्मों के विवेक के लिये यज्ञ इत्यादि धर्म और ब्रह्महत्या आदि अधर्म अलग करके उनके सुख-दुःख देने वाले फल को प्रजा के पीछे बनाया।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(च) और फिर (कर्मणां विवेकार्थम्) कर्मों के विवेचन के लिए (धर्म - अधर्मो) धर्म - अधर्म का (व्येचयत्) विभाग किया (च) तथा (इमाः प्रजाः) इन प्रजाओं को (सुख दुःखादिभिः द्वन्द्वैः) सुख - दुःख आदि द्वन्द्वों (दो विरोधी गुणों या अवस्थाओं के जोड़ों) से (अयोजयत्) संयुक्त किया । सूक्ष्म से स्थूल के क्रम से सृष्टि का वर्णन -
 
USER COMMENTS
Comment By: Narender Arya
Dharm Kya h
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS