Manu Smriti
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अग्नीन्धनं भैक्षचर्यां अधःशय्यां गुरोर्हितम् ।आ समावर्तनात्कुर्यात्कृतोपनयनो द्विजः ।2/108

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिसका जनेऊ हो गया हो वह जब तक वेद को औद्योपात न पढ़ ले तब तक हवन करता रहे, भिक्षा माँगे, पृथ्वी पर सोवे और गुरु के हित में रत (लगा) रहे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. कृतोपनयनः द्विजः यज्ञोपवीत संस्कार में दीक्षित द्विज अग्नीन्धनम् अग्निहोत्र करना भैक्षचर्याम् भिक्षावृत्ति अधः शय्याम् भूमि में शयन गुरोः हितम् गुरू की सेवा आसमावर्तनात् समावर्तन संस्कार वेदाध्ययन समाप्त करके घर लौटने तक तक कुर्यात् करता रहे ।
 
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