Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य दोनों समय की संध्या नहीं करता है वह शूद्रवत् द्विज कर्मों से बहिष्कार (बाहर) करने योग्य है। क्योंकि उसमें द्विजों का धर्म उपस्थित नहीं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यः जो मनुष्य पूर्वां न तिष्ठति च पश्चिमां न उपास्ते नित्य प्रातः और सांय संध्योपासन को नहीं करता सः शूद्रवत् उसको शूद्र के समान समझकर सर्वस्मात् द्विजकर्मणः बहिष्कार्यः समस्त द्विजकुल से अलग करके शूद्र कुल में रख देना चाहिए ।
(द० ल० प० पृ० २३९)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो द्विज (ब्रह्मचारी) प्रातःसन्ध्या का अनुष्ठान नहीं करता, और जो सायंसन्ध्या की उपासना नहीं करता, उसे सज्जन लोग द्विजों के सब कर्मों से शूद्र के समान बहिष्कृत कर दें।