Manu Smriti
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मुखबाहूरुपज्जानां या लोके जातयो बहिः ।म्लेच्छवाचश्चार्यवाचः सर्वे ते दस्यवः स्मृताः ।।10/45

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्णों के कार्यों को त्याग देने से जितनी जाति चाहे उनका नाम संस्कृत विद्या का हो वा अन्य भाषा का हो वह सब जातियाँ (फिरकः) दस्यु कहलाते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
लोक में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों से कर्त्तव्यपालन न करने के कारण बहिष्कृत या इनमें अदीक्षित (या जातयः) जो जातियाँ है चाहे वे स्लेच्छभाषाएं बोलती है या आर्यभाषाएं वे सब ’दस्यु’ कहलाती है ।
टिप्पणी :
महर्षि दयानन्द ने इस श्लोक की द्वितीय पंक्ति उद्धृत करके लिखा है-"जो आर्यावर्त देश से भिन्न देश है, वे दस्यु देश और स्लेच्छदेश कहाते हैं ।" (स. प्र. अष्टम समु.)टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
 
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