Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. (गुरोः उपसंग्रहणम्) गुरू के चरणों का स्पर्श व्यत्यस्तपाणिना कार्यम् हाथों को अदल - बदल करके प्रणामकत्र्ता का बायां हाथ नीचे रहकर गुरू के बायें पैर का स्पर्श करे और उसके ऊपर से दायां हाथ दायें चरण को स्पर्श करे करना चाहिए सव्येन सव्यः बायें हाथ से बायां चरण च और दक्षिणेन दक्षिणः दायें हाथ से दायां पैर का स्प्रष्टव्यः स्पर्श करना चाहिए ।