Manu Smriti
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एष प्रोक्तो द्विजातीनां औपनायनिको विधिः ।उत्पत्तिव्यञ्जकः पुण्यः कर्मयोगं निबोधत ।2/68

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. (एषः) यह (२।११-४२) (द्विजातीनां उत्पत्तिव्यंजकः) द्विजातियों के द्वितीय जन्म को प्रकट करने वाली अर्थात् मनुष्यों को द्विज = ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य बनाने वाली (पुण्यः) कल्याण - कारक (औपनायनिकः विधिः) उपनयन संस्कार की विधि प्रोक्तः कही, कर्मयोगं निबोधत अब उपनयन में दीक्षित होने वाले द्विज ब्रह्मचारियों के कत्र्तव्यों को सुनो - ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यह द्विजों की उपनयन-सम्बन्धी विधि कही गयी जोकि द्विजत्व (द्वितीय जन्म) की प्रकाशक है और पावक्त है। अब ब्रह्मचारियों के कर्तव्यों को समझिए-
 
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