Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. (एषः) यह (२।११-४२) (द्विजातीनां उत्पत्तिव्यंजकः) द्विजातियों के द्वितीय जन्म को प्रकट करने वाली अर्थात् मनुष्यों को द्विज = ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य बनाने वाली (पुण्यः) कल्याण - कारक (औपनायनिकः विधिः) उपनयन संस्कार की विधि प्रोक्तः कही, कर्मयोगं निबोधत अब उपनयन में दीक्षित होने वाले द्विज ब्रह्मचारियों के कत्र्तव्यों को सुनो - ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यह द्विजों की उपनयन-सम्बन्धी विधि कही गयी जोकि द्विजत्व (द्वितीय जन्म) की प्रकाशक है और पावक्त है। अब ब्रह्मचारियों के कर्तव्यों को समझिए-