Manu Smriti
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मेखलां अजिनं दण्डं उपवीतं कमण्डलुम् ।अप्सु प्रास्य विनष्टानि गृह्णीतान्यानि मन्त्रवत् ।2/64

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मेखला, चमड़ा, दण्ड, जनेऊ, कुण्डल ये सब टूट जावें तो जल में दें और मन्त्र द्वारा नया धारण कर लें।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जप ब्रह्मचारी की मेखला, मृगछाल, दण्ड, यज्ञोपवीत व कमण्डलु टूट जावे तो उसे जल में फैंक कर मन्त्रोच्चारण पूर्वक दूसरा ले लेवे।
 
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