Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
नित्य चित्त को एकाग्र करके आचमन करने के पश्चात् भोजन करें। भोजनोपरान्त (भोजन के पश्चात्) आचमन करें और इन्द्रियों को पानी से प्रछालें (खुए, धोए)।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
द्विजः द्विज नित्यम् प्रतिदिन उपस्पृश्य आचमन करके समाहितः एकाग्र मन से अन्नं अद्यात् भोजन खाये च और भुक्त्वा खाकर सम्यक् अच्छी प्रकार उपस्पृशेत् कुल्ला करे च तथा अद्भिः खानि संस्पृशेत् जल से नाक, कान ‘‘नेत्र आदि इन्द्रियों का स्पर्श करे ।’’
टिप्पणी :
‘‘नित्य .............भोजन के पूर्व शुद्ध जल का आचमन किया कर ।’’
(सं० वि० वेदारम्भ संस्कार)