यन्मूर्त्यवयवाः सूक्ष्मास्तानीमान्याश्रयन्ति षट् ।तस्माच्छरीरं इत्याहुस्तस्य मूर्तिं मनीषिणः । ।1/17 यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्रकृति महत्ब्रह्म के शरीर के छः सूक्ष्म अवयव अर्थात् तन्मात्रा और अहंकार और इन्द्रियों के पैदा करने वाली है।