Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दण्ड धारण करके सूर्य के सम्मुख होकर अग्नि की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करके निम्नलिखित शास्त्र की विधि से भिक्षा माँगें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ईप्सितं दण्ड प्रतिगृह्य ऊपर वर्णित दण्डों में अपने योग्य दण्ड धारण करके च और भास्करं उपस्थय सूर्य के सामने खड़ा होके अग्नि प्रदक्षिणं परीत्य यज्ञाग्नि की प्रदक्षिणा - परिक्रमा करके यथाविधि विधि- अनुसार (२।२४-२५) भैक्षं चरेत् भिक्षा मांगे ।
टिप्पणी :
‘‘तत्पश्चात् ब्रह्मचारी यज्ञकुण्ड की प्रदक्षिणा करके कुण्ड के पश्चिम भाग में खड़ा रह के माता - पिता , बहन - भाई, मामा - मौसी, चाचा आदि से लेके जो भिक्षा देने में नकार न करें उनसे भिक्षा मांगे ।’’
(सं० वि० वेदारम्भ संस्कार)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ब्रह्मचारी अभीष्ट दण्ड को लेकर और गुरु को प्रणाम कर तथा यज्ञाग्नि की प्रदक्षिणा करके यथाविधि भिक्षाचरण करे।