Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जब तक ऐेसे ब्राह्मण प्रायश्चित (अर्थात् विधिवत् पाप से मुक्त होने का पश्चाताप वा दण्ड) न करे तब तक उनके साथ पढ़ने पढ़ाने विवाहादि का व्यवहार न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ब्राह्मणः द्विजों में कोई भी व्यक्ति एतैः अपूतैः सह इन पतितों के साथ कर्हिचित् आपद्यपि हि कभी आपत्काल में भी विधिवत् नियमपूर्वक ब्राह्मान् विद्याध्ययन - अध्यापन सम्बन्धी च और यौनान् विवाह - सम्बन्धी सम्बन्धान् व्यवहारों को न आचरेत न करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
पूर्वोक्त प्रकार से अपवित्र इन व्रात्य शूद्रों के साथ द्विज कभी आपत्तिकाल में भी द्विज-विरादरी का और विवाह का सम्बन्ध न करे (क्योंकि वे अब द्विज नहीं रहे)।