Manu Smriti
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आ षोदशाद्ब्राह्मणस्य सावित्री नातिवर्तते ।आ द्वाविंशात्क्षत्रबन्धोरा चतुर्विंशतेर्विशः ।2/38

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सोलह, बाइस, चौबीस वर्ष पय्र्यनत क्रमानुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य गायत्री (सावित्री) के अधिकारी रहते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ब्राह्मणस्य ब्राह्मण के बालक का आ - षोडशात् सोलह वर्षों तक क्षत्र - बन्धोः क्षत्रिय के बालक का आ - द्वाविंशात् बाईस वर्ष तक विशः वैश्य के बालक का आ - चतुर्विशतेः चौबीस वर्ष तक सावित्री न + अतिवर्तते यज्ञोपवीत का अतिक्रमण नहीं होता अर्थात् इन अवस्थाओं तक उपनयन संस्कार कराया जा सकता है ।
टिप्पणी :
‘‘आषोडशात् ब्राह्मणस्यानतीतकालः ।।५।। आद्वाविंशात् क्षत्रियस्य, आचतुर्विशाद्वैश्यस्य ।।६।। आश्व० गृह्यसूत्र - ब्राह्मण के सोलह, क्षत्रिय के बाईस और वैश्य के बालक का चौबीस वर्ष से पूर्व - पूर्व यज्ञोपवीत होना चाहिये ।’’ (सं० वि० उपनयन संस्कार)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
गर्भ से सोलहवें वर्ष से पूर्व तक ब्राह्मण के, गर्भ से वाईसवें वर्ष से पूर्व तक क्षत्रिय के, और गर्भ से चौबीसवें वर्ष से पूर्व तक वैश्य के यज्ञोपवीत-काल का अतिकमण नहीं होता। अर्थात्, अधिक से अधिक इस अन्तिम अवधि तक तो उपनयन संस्कार अवश्य हो जाना चाहिए।
 
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