Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य को गर्भावान आदि शारीरिक संस्कार लोक और परलोक में पवित्र करने वाले हैं। इस हेतु इन संस्कारों को करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इसी से सब मनुष्यों को उचित है कि (वैदिकैः पुण्यैः कर्मभिः) वेदोक्त पुण्यरूप कर्मों से द्विजन्मनाम् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अपने सन्तानों का निषेकादिः शरीरसंस्कारः कार्यः निषेकादि - गर्भाधान आदि संस्कार करें, जो इह च प्रेत्य पावनः इस जन्म वा परजन्म में पवित्र करने वाला है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(वैदिकैः कर्मभिः पुण्यैः) वेदानुकूल पुण्य विधि से (निषेक आदिः) गर्भाधान आदि (द्विजन्मनाम्) द्विजों का (काय्र्यः) करना चाहिये। (शरीरसंस्कारः) शरीर-संस्कार (पावनः) पवित्र करने वाला (प्रेत्य च) मरने के पीछे और (इह च) इस लोक में भी।
द्विजों के वेदानुकूल गर्भाधान आदि सब संस्कार करने चाहिये। यह संस्कार इस लोक में और परलोक में भी पवित्र करने वाले होते हैं।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वेदोक्त पुण्यकर्मों से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अपने सन्तानों का निषेकादि संस्कार करें, जो शरीर को संस्कृत करता है और इस जन्म वा परजन्म में स्त्र को पवित्र करने वाला है।१
टिप्पणी :
१. जातकर्मादि सब संस्कारों के लिए संस्कारविधि के प्रकरण देखें।
जातकर्म से पूर्व के तीन संस्कारों का पृथक् वर्णन मनु से नहीं किया परन्तु ‘गार्भैः होमः’ से उनका निर्देश कर दिया है। ‘कर्णवेध’ संस्कार मनु से नहीं दिया।