Manu Smriti
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एषा धर्मस्य वो योनिः समासेन प्रकीर्तिता ।संभवश्चास्य सर्वस्य वर्णधर्मान्निबोधत । । 2/25

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
भृगुजी कहते हैं कि हे ऋषि लोगों ! आप से सब की उत्पत्ति और धर्म को वर्णन किया। अब वर्णों का धर्म कहते हैं-
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
एषा यह धर्मस्य योनिः धर्म की उत्पत्ति १२० से १३९ तक अथवा २।१ से २।२० च और अस्य सर्वस्य संभवः इस समस्त जगत् की उत्पत्ति समासेन संक्षेप से वः प्रकीर्तिता आप लोगों को कही, अब वर्ण - धर्मान् वर्णधर्मों को निबोधत सुनो ।
टिप्पणी :
१।१४४/२।२५ इससे मनु का आशय स्पष्ट है कि मनु विषय की समाप्ति यहां पर मानते हैं और अगले अध्याय के विषय का निर्देश भी कर रहे हैं । और ये श्लोक इतने अधिक भी नहीं हैं, जो प्रथमाध्याय के साथ न आ सकें । अधिक लम्बे विषय को तो एक से अधिक अध्यायों में विभाजित करना उचित भी लगता है । और महर्षि - मनु ने विषयों का विभाग बहुत ही सूझ बूझ से किया है । प्रथमा अध्याय में दो ही परस्पर सम्बद्ध विषय रक्खे हैं । सृष्टि - उत्पत्ति तथा धर्मोत्पत्ति । जगदुत्पत्ति के बाद ही धर्मोत्पत्ति आवश्यक है । अतः धर्मोत्पत्ति विषय को खण्डित करके दो अध्यायों में रखना सुसंगत नहीं है । धर्म - विषयक श्लोकों को इकट्ठा न रखकर अध्याय की समाप्ति अपूर्ण ही रहती है । अतः द्वितीयध्याय में उपलब्ध २५ श्लोकों को प्रथमाध्याय के साथ ही रखने से मनु की विषय - वर्णन शैली सुव्यवस्थित हो जाती है । मनु के प्रवचनों के अध्याय के विभाजन में यह महती भूल पाठक को खटकती रहती थी । इस लिये यहां विषयानुसार ही अध्यायों का विभाग रखा गया है । इति महर्षिमनुप्रोक्तायां प्राकृतभाष्यसमन्वितायां प्रक्षिप्तश्लोक - समीक्षा - विभूषितायांच्च मनुस्मृतौ जगदुत्पत्तिधर्मोपत्त्यात्मकः प्रथमोऽध्यायः ।।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(एषा) यह (धर्मस्य) धर्म की (वः) आप से (योनि) योनि या निकास (समासेन) संक्षेप से (प्रकीर्तिता) कहा गया (संभवः च) और उत्पत्ति (अस्य सर्वस्य) इस सब जगत् की (वर्णधर्मान्) वर्णधर्मों को (निबोधत) आप जानिये। अर्थात् यहाँ संक्षेप से इस सब जगत् की तथा धर्म की उत्पत्ति का वर्णन कर दिया। किस किस वर्ण के क्या धर्म हैं यह आप लोग जानिये।
 
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