Manu Smriti
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भुक्तवान्विहरेच्चैव स्त्रीभिरन्तःपुरे सह ।विहृत्य तु यथाकालं पुनः कार्याणि चिन्तयेत् ।।7/221
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
भोजन करने के पश्चात् अन्तःपुर में स्त्रियों के साथ विहार करें, तत्पश्चात् समय पाकर फिर राज्य सम्बन्धी कार्यों की चिन्ता ना करें।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
भोजन करने के पश्चात्, कुछ काल अन्तःपुर में पत्नी, माता, बहिन, कन्या आदि स्त्रियों से हंसी-खुशी का वार्तालाप करे। इस प्रकार आमोद-प्रमोद करके निश्चित समय में पुनः आगे दर्शाये हुए न्याय-कार्यों का विचार करे।
 
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