Manu Smriti
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क्सेम्यां सस्यप्रदां नित्यं पशुवृद्धिकरीं अपि ।परित्यजेन्नृपो भूमिं आत्मार्थं अविचारयन् ।।7/212

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो भूमि निर्दोष, उपजाऊ तथा पशुओं की वृद्धि करने वाली है यदि उसको बिना परित्याग किये आत्मा की रक्षा न हो सकती हो तो उस भूमि को बिना सोच विचार किये निज आत्मा के रक्षार्थ परित्याग कर दे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राजा अपनी या अपने राज्य की रक्षा के लिए आरोग्यता से युक्त धान्य - घास आदि से उपजाऊ रहने वाली सदैव जहां पशुओं की वृद्धि होती हो, ऐसी भूमि को भी बिना विचार किये छोड़ देवे अर्थात् विजयी राजा को देनी पड़े तो दे दे, उसमें कष्ट अनुभव न करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसलिए राजा को चाहिए कि वह सदा कल्याणकारी, सदा सस्यशाली तथा सदा पशुवृद्धिकारी भी पराजय को, अपने लिए रखने के विचार को न करके, सर्वथा त्याग दे और उसे कभी ग्रहण न करे।
 
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