Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वर्तमान समय में अल्प सामथ्र्य वाला मित्र तथा भविष्य में उन्नत व स्थिर चित्त मित्र को पाकर जैसी उन्नति पाता है वैसी उन्नति सोना, भूमि के पाने से नहीं पाता।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राजा सुवर्ण और भूमि की प्राप्ति से वैसा नहीं बढ़ता कि जैसे निश्चल प्रेम युक्त भविष्यत् की बातों को सोचने और कार्य - सिद्ध करने वाले समर्थ मित्र अथवा दुर्बल मित्र को भी प्राप्त होके बढ़ता है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि राजा सुवर्ण व भूमि की प्राप्ति से वैसा नहीं बढ़ता जैसा कि निश्चल प्रेमयुक्त, भविष्यत् की बातों को सोचने व कार्य सिद्ध करने में समर्थ, दुर्बल भी मित्र को पाकर बढ़ता है।