Manu Smriti
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कुरुक्षेत्रांश्च मत्स्यांश्च पञ्चालाञ् शूरसेनजान् ।दीर्घांल्लघूंश्चैव नरानग्रानीकेषु योजयेत् ।।7/193
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कुरुक्षेत्र, मत्स्य, पंचाल, शूरसेन इन देशों में जो मनुष्य छोटे व बड़े उत्पन्न हुये हों उनको सम्मुख करके युद्ध करें, क्योंकि यह लोग साहसी होते हैं।
टिप्पणी :
यह श्लोक बहुत समय पश्चात् सम्मिलित किया गया है क्योंकि कुरुक्षेत्र में कौरवों के पीछे बना है तथा मनुजी उस समय से पहले हुए हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यह (७।१९३) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त हैं - १. प्रसंग - विरोध - (क) यह श्लोक पूर्वापर क्रम को भंग करने के कारण प्रक्षिप्त है । इससे पहले श्लोक में (१९२ में) जल - स्थल में युद्ध करने के वाहन और हथियारों का वर्णन किया गया है और १९४ में व्यूह - रचना करके युद्ध करना, सैनिकों की चेष्टाओं को जाननादि सामान्य विधान किया है । किन्तु इनके मध्य में कुरूक्षेत्रादि प्रदेश विशेषों योद्धाओं की युद्ध में नियुक्ति करने का वर्णन अप्रासंगिक है । (ख) और यदि यह कहा जाये कि युद्ध के लिये विशेष प्रदेशों के मनुष्य उपयुक्त रहते हैं, तो भी यह श्लोक ठीक नहीं है । क्यों कि इस श्लोक में लम्बे और छोटे कद के दोनों प्रकार के मनुष्य लिखे हैं । और प्रक्षेपक ने यह भी ध्यान नहीं रक्खा है कि दोनों कुरूक्षेत्र, पंच्चालादि प्रदेशों में किस कद के व्यक्ति रहते हैं ? और छोटे कद के व्यक्तियों के निवास का एक भी प्रदेश श्लोक में नहीं दिखाया है । अतः यह श्लोक अप्रासंगिक एवं अयुक्तियुक्त है । २. अन्तर्विरोध - (क) मनु ने २।२० श्लोक में स्पष्ट कहा है कि शास्त्र की व्यवस्थायें सार्वभौमिक हैं । अतः किसी देश - विशेष अथवा एक देश के भी कुछ प्रदेशों की बात कहकर प्रक्षेपक ने इस शास्त्र को सीमित कर दिया है । (ख) मनु सृष्टि के आदि में हुए हैं । उस समय कुरूक्षेत्रादि प्रदेशों का विभाजन भी नहीं हुआ था । एतदर्थ २।१९ का अनुशीलन द्रष्टव्य है । अतः परवर्ती बातें मनुप्रोक्त नहीं हो सकतीं । (ग) और इस श्लोक में कुछ प्रदेश - विशेषों के सैनिकों को युद्ध में आगे रखने का निर्देश है । और जिन देशों में अथवा राज्यों में प्रदेश नहीं हैं, वे ऐसे सैनिक कहां से लायेंगे ? अतः प्रसंग - विरूद्ध और अन्तर्विरोधों के कारण यह श्लोक प्रक्षिप्त है ।
 
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