Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जिसका आश्रय लेवे उस पुरूष के कर्मों में दोष देखें तो वहां भी अच्छे प्रकार युद्ध ही को निःशंक होकर करे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि इस पर भी, गुरुवत् दूसरे बलवान् राजा का आश्रय लेने पर, उस राजा के कर्मों में दोष देखे और अपनी रक्षा न हो सकती हो, तो सर्वथा निःशङ्क होकर उस समय भली प्रकार युद्ध ही करे।१
टिप्पणी :
इन तीन श्लोकों के परिणामरूप में स्वामी जी आगे लिखते हैं-‘‘जो धार्मिक राजा हो, उससे विरोध कभी न करे, किन्तु सदा उससे मेल रखे। और, जो दुष्ट प्रबल हो, उसी के जीतने के लिए ये पूर्वोक्त प्रयोग करने उचित हैं।’’