Manu Smriti
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यदि तत्रापि संपश्येद्दोषं संश्रयकारितम् ।सुयुद्धं एव तत्रापि निर्विशङ्कः समाचरेत् ।।7/176

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जब शरण लेने में भी कुछ हानि समझें तब शंका को परे हटा सुयुद्ध करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जिसका आश्रय लेवे उस पुरूष के कर्मों में दोष देखें तो वहां भी अच्छे प्रकार युद्ध ही को निःशंक होकर करे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि इस पर भी, गुरुवत् दूसरे बलवान् राजा का आश्रय लेने पर, उस राजा के कर्मों में दोष देखे और अपनी रक्षा न हो सकती हो, तो सर्वथा निःशङ्क होकर उस समय भली प्रकार युद्ध ही करे।१
टिप्पणी :
इन तीन श्लोकों के परिणामरूप में स्वामी जी आगे लिखते हैं-‘‘जो धार्मिक राजा हो, उससे विरोध कभी न करे, किन्तु सदा उससे मेल रखे। और, जो दुष्ट प्रबल हो, उसी के जीतने के लिए ये पूर्वोक्त प्रयोग करने उचित हैं।’’
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
अगर तब भी आश्रय लेने में दोष दिखाई पडता हो तो फिर भयरहित होकर लडाई में जुट जाय ।
 
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