Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सूर्योदय में, सूर्यास्त में और सूर्य और नक्षत्र के न होने में, इन तीनों समयों में हवन करने को वेद की आज्ञा है। प्रातः का यज्ञ सूय्र्योदय से प्रथम और सांयकाल का हवन सूर्य की उपस्थिति में करें, यदि विलम्ब हो जावे तो नक्षत्रोदय से प्रथम करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
उदिते सूर्योदय के समय च अनुद्विते और सूर्यास्त के समय तथा तथा समयाध्युषिते किसी भी निर्धारित किये समय में जैसे विशेष उपलक्ष्य में आयोजित यज्ञ सर्वथा यज्ञ वर्तते सब स्थितियों में यज्ञ कर लेना चाहिए इति इयं वैदिकी श्रुतिः इस प्रकार ये तीनों ही वैदिक वचन हैं अर्थात् ये तीनों ही धर्म हैं ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(उदिते अनुदिते च एव) सूय्र्य के उदय होने पर, सूय्र्य के उदय न होने पर (समय-अधि-उषिते तथा) और ऐसे समय में जब सूय्र्य और नक्षत्र न हों (सर्वथा) सब प्रकार से (वर्तते यज्ञः) यज्ञ होता है। (इति इमं वैदिकी श्रुतिः) ऐसी वेद की श्रुति है।
अर्थात् वेद में कहा है कि सूय्र्य निकलने पर यज्ञ करो। यह भी लिखा कि सूय्र्य डूबने पर करो। यह विरुद्ध तो हैं परन्तु दोनों ठीक हैं।