Manu Smriti
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अमात्यराष्ट्रदुर्गार्थ दण्डाख्याः पञ्च चापराः ।प्रत्येकं कथिता ह्येताः संक्षेपेण द्विसप्ततिः ।।7/157

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मन्त्री, राष्ट्र, किला, कोश, दण्ड नामक और पाँच प्रकृतियाँ हैं । पूर्वोक्त (१५५-१५६) बारह प्रकृतियों के साथ ये मिलकर अर्थात् पूर्वोक्त प्रत्येक बारहों प्रकृतियों के पांच - पंाच भेद होकर इस प्रकार संक्षेप से कुल ७२ प्रकृतियां (विचारणीय स्थितियां या विषय) हो जाती हैं । १२ पूर्व की और १२ के ५- ५ भेद से ६० इस प्रकार १२ गुणा ५ बराबर ६० +१२ बराबर ७२ हैं ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
मन्त्री राष्ट्र दुर्ग अर्थ या खजाना दण्ड यह पाॅच और है । विस्तार करने से बहतर होती है।
 
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