Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
शत्रु शत्रु से विजय प्राप्त करने का इच्छुक, (1) मध्यम तथा (2) उदासीन इन चारों की हार्दिक इच्छा का ज्ञान प्राप्त करें और विचारें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
और ‘मध्यम्’ राजा का आचरण का तथा ‘विजिगीषु’ राजा के प्रयत्नों का तथा ‘उदासीन’ राजा की स्थिति का एवं शत्रु राजा के आचरण एवं स्थिति आदि का भी प्रयत्नपूर्वक विचार करे अर्थात् विचार करके तदनुसार प्रयत्न भी करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(६) सम-बल, अधिक-बल, और हीन-बल-इन तीनों प्रकार के मित्र राजाओं, तथा विशेषतः सब प्रकार के शत्रुओं की हलचलों पर विचार करे। (श्लोक ५९ से मिलाओ)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(1) मघ्यम (2) जीतने की इच्छा वाला (3) उदासीन (4) शत्रु के विचारो को प्र्रयत्न करके जानता रहे ।